गुमसुम बैठी उदास 
अकारण क्रोध की आंधी 
पूरा धर हिला जाती 
पर  कारण खोज न पाती 
कितनी बार खुद को टटोला 
रहा अभियान नितांत खोखला 
कारण की थाह न पाई 
खुद की कमीं नजर न आई 
हूँ वही जो कभी खुश रहती थी 
कितनी भी कडवाहट  हो 
गरल सी गटक लेती थी 
उसे भुला देती थी 
पर  अब बिना बात 
उलझाने  लगती 
कटुभाषण  का वार
अनायास उन पर
जिनका दूर दूर तक
अनायास उन पर
जिनका दूर दूर तक
कोइ भी न हो वास्ता 
बाध्य  करता सोचने  को 
हुआ ऐसा क्या की 
अनियंत्रित मन रहने लगा 
कटुभाषण  हावी हुआ 
बहुत सोचा तभी जाना 
अक्षमता शारीरिक 
मन पर हावी हुई 
असंतोष का कारण हुई |
आशा 








