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विचरण कविता लोक में 
स्वप्न जगत से कम नहीं 
हर शब्द प्रभावित करता 
निहित भावों की सुगंध से |
दस्तक दिल के द्वार पर 
चंचल मन स्पंदित करती 
द्रुत गति से ह्रदय धड़कता 
वहां प्रवेश करने में |
जब पहला कदम बढाया 
सब कुछ नया नया सा था 
पैरों में होता  कम्पन 
आगे बढ़ने न देता |
राह कठिन पर मन हठी
रुका नहीं बढ़ता गया 
बाधाएं सारी पार कर 
मार्ग प्रशस्त करता गया |
आज हूँ जिस मोड़ पर 
भाव मुखर होते हैं 
स्वप्नों को बुन पाती हूँ 
शब्दों के जालक में |
आशा
आशा