यह प्यार दुलार
जब भी पाया 
था वह केवल
बचपन ही  
आते जाते लोग
भी प्यार से बुलाते 
हंसते हंसाते
बतियाते खेलते खाते खिलाते 
कब समय गुजर
गया याद नहीं 
बस शेष रहीं
यादें 
बंधन विहीन उन्मुक्त
जीवन 
तब कभी भय न
हुआ 
डर क्या होता
है तब न जाना 
आज हर पल जिसके
साए में रहते 
फिर क्यूं न
याद करें 
उस बीते हुए कल
को 
जब सब अपने थे गैर
कोई नहीं 
आज होने लगा है
एहसास पराएपन का 
दिखावटी प्यार
जताते घेरा डाले 
न जाने कहाँ की
बातें करते 
अपनत्व जताते अजनवी
चेहरों का 
पर कभी भी साथ
न देते 
मतलब साधना कोई
उनसे सीखे 
यही विडम्बना
जीवन की 
खींच  ले जाती मुझे बीते कल में 
उनींदी पलकों
में पलते बचपन के सपनों में 
और मैं खो जाती
हूँ यादों की दुनिया में |
आशा 



