सुख साधन जोड़े थे
उनको जिया जी भर के
यथा संभव खुशियां समेटीं
फिर भी असंतोष मन में |
है यह कैसा चक्रव्यूह
अभिमंन्यू सा फैसता गया
सभी यत्न विफल हुए
बाहर निकलने में |
कभी पढ़ा था
संतोषी सदा सुखी
पर वह रह गया वहीं
जीवन में न उतर पाया |
आकांक्षाएं बढ़ती गईं
पूर्ति जिनकी थी असंभव
संयम की नाव डगमगाई
समूचा हिला गई |
विकराल रूप ले लहरों ने
बीच भंवर तक पहुंचाया
जीवन नैया डूब रही
असंतोष के भंवर में |
जीवन भार सा हुआ
संतुष्टि के अभाव में
खुशियाँ सारी खो गईं
जीवन के अंतिम पड़ाव में |
आशा