09 जून, 2016
06 जून, 2016
तेवर
ना दिखा तेवर अपने
क्या हम ही मिले थे
सबसे पहले
तेरी नाराजगी
ज़रा सी बात पर
शराफ़त तक भूली
लाल पीली होने लगी
बिना बात की बात पर
यह कैसा व्यबहार तेरा
संयम अपना खो कर
सारी हदें पार कर
बातों को तूल देने लगती
हर वक्त की किचकिच
यह नाराजगी
घर को घर न रहने देती
मन संतप्त कर देती
हमें तो प्यारी लगती है
मुस्कान भरी चितवन तेरी
आगे से तेवर अपने
न दिखाना मुझ को
प्यार भरे दिल की सौगात
ही बहुत है मेरे लिए |
आशा
ये पांच दिन
गिन गिन दिन चिंता बढी
कारण समझ न पाई
दो दिन पूर्व ही आने को थे
ना आए क्या बात हुई
कल भी पूरा दिन बीता
रात बिताई तारे गिन गिन
दो से चार चार से आठ
अनगिनत तारों का संगठन
गिनना लगा असंभव
किये नेत्र बंद पर
निंद्रा से कोसों दूर
तुम ही तुम नजर आए
अचानक धन गरजे
बिजली कड़की
आंधी चली वृष्टि हुई
अधिक बेचैन कर गई
फोन पर तुमने कहा
फँस गया हूँ कार्य में
पांच दिन न आ सकूंगा
कुछ राहत मन को मिली
फिर भी हूँ परेशान कैसे कटें
ये पांच दिन तुम्हारे बिन |
आशा
01 जून, 2016
ऐतवार उठ गया है
मैंने सत्य के अलावा 
 कुछ न कहा 
तूने ही मुझे झुटलाया 
मैं जान नहीं पाया 
क्या था तेरा   इरादा 
यदि थोड़ी  भनक होती 
कुछ तो लिहाज करती 
मुंह से नहीं कहती 
इशारे से ही सही 
मन की चाह  बताती 
मुझे भरम न होता 
इतना प्रपंच न होता 
मैं मौन धारण कर लेता 
एक शब्द भी न कहता 
पर तूने सब के समक्ष  
 झूटा मुझे  बनाया 
 मन को ठेस लगी 
दिल पर गहरा घाव हुआ 
जाने कब तक भर पाएगा 
कहीं नासूर तो न हो जाएगा 
पर तुझे इससे क्या 
खैर जो हुआ सो हुआ 
तेरी बेवफाई की 
यादें न भूल पाऊंगा 
ऐतवार उठ गया है 
कैसे पुनः   पाऊंगा |
आशा 
30 मई, 2016
कलम नहीं चला पाई
सैलाब भावनाओं का ऐसा 
वह सोचती ही रह गई 
कापी कलम ली हाथ में 
पर मति कुंद हो गई 
   कैसे लिखे कितना लिखे 
विचारों में उलझती गई 
किस विषय का चयन करे 
वह सोच नहीं पाई |
शब्दों का भण्डार अपार 
उनमें ही डुबकी लगाई 
लिखने की रही  क्षमता 
पर कलम नहीं चला पाई |
क्या यह थी कुंठा मन की 
या प्रहार की चिंता थी 
चेक था हाथों में 
पर उसे भी न भुना पाई |
आशा
28 मई, 2016
झूला बाहों का
आई छुट्टी गर्मीं की
कोई काम न धाम
सड़क नाप बाग़ में पहुंचे
थी झूले की तलाश
एक डाल मजबूत दिखी
पर रस्सी तब भी न मिली
थी हाथों में शक्ति
डाली पर लगाई छलांग
 अब प्रयत्न सफल हुआ 
वही डाल झूला बनी
आनंद से उत्फुल्ल हुए
मित्रों को करतब दिखा
फूले नहीं समाए
वही डाल झूला बनी
आनंद से उत्फुल्ल हुए
मित्रों को करतब दिखा
फूले नहीं समाए
नए करतब की तलाश में
 दिमागी  घोड़े दौड़ाए |
आशा
आशा
27 मई, 2016
छितराए बादल
मैंने तुझे बंधक बनाया  
अच्छा किया 
नहीं तो तू भाग जाता 
बूँद बूँद के लिए तरसाता 
बदरा है तू कितना निष्ठुर 
आता है चला जाता है 
ज़रा भी तरस नहीं खाता 
जल बिन जीवन कैसा होगा 
कभी सोचना नहीं चाहता 
यूं  तो जल की कमीं नहीं 
दो तिहाई समुन्दर है 
पर है उसमें खारा जल
  उस  जल का क्या करें 
प्यास बुझ नहीं सकती 
आए दिन उसकी लहरें 
सीमा छोड़ कर अपनी 
जब उत्पात मचाने लगती  
जन जीवन होता प्रभावित 
उत्पात मचाती तरंगों से 
तेरा भागना इस तरह 
मुझे अच्छा नहीं लगता
मान  मेरी बात 
गति अपनी नियंत्रित कर 
यदि तू समय का ध्यान रखेगा 
सभी तुझे सराहेंगे 
तेरी अवमानना न होगी 
तुझे भी प्रसन्नता होगी |
आशा 
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