17 नवंबर, 2017

सत्यानुरागी




मिलते हज़ारों में 
दो चार अनुयायी सत्य के 
सत्यप्रेमी यदा कदा ही मिल पाते 
वे पीछे मुड़ कर नहीं देखते !
सदाचरण में होते लिप्त 
सद्गुणियों से शिक्षा ले 
उनका ही अनुसरण करते 
होते प्रशंसा के पात्र ! 

लेकिन असत्य प्रेमियों की भी 
इस जगत में कमी नहीं 
अवगुणों की माला पहने 
शीश तक न झुकाते 
अधिक उछल कर चले 
वैसे ही उनके मित्र मिलते 
लाज नहीं आती उन्हें 
किसी भी कुकृत्य में !

भीड़ अनुयाइयों की 
चतुरंगी सेना सी बढ़ती 
कब कहाँ वार करेगी 
जानती नहीं 
उस राह पर क्या होगा 
उसका अंजाम 
इतना भी पहचानती नहीं !

दुविधा में मन है विचलित 
सोचता है किधर जाए 
दे सत्य का साथ या 
असत्य की सेना से जुड़ जाए 
जीवन सुख से बीते 
या दुखों की दूकान लगे 
ज़िंदगी तो कट ही जाती है 
किसी एक राह पर बढ़ती जाती है  
परिणाम जो भी हो 
वर्तमान की सरिता के बहाव में 
कैसी भी समस्या हो 
उनसे निपट लेती है ! 


आशा सक्सेना 






06 नवंबर, 2017

आने को है बाल दिवस



हे कर्मवीर  
चाचा नेहरू तुम्हें 
मेरा प्रणाम 

रहे सक्रिय 
विविध रंग देखे 
राजनीति में 

नेहरू रहे 
गाँधी के अनुयायी 
आज़ादी चाही 

बाल दिवस 
चाचा नेहरू का है 
जन्म दिवस 

नेहरू जी ने 
दिया स्नेह अपार 
नन्हे मुन्नों को 

लाल गुलाब 
कोट की जेब पर 
सजा प्रेम से 

लुटाया प्यार 
देश के बच्चों पर 
अपरम्पार 

बालक मन 
सरिता सा निश्च्छल 
होता सरल 

धनुषाकार 
चंचल चितवन 
है विलक्षण 

जीत लेते हैं 
बच्चे सभी का मन 
भोली बातों से 

आने वाला है 
बच्चों को अति प्रिय 
बाल दिवस 



आशा सक्सेना 






29 अक्तूबर, 2017

दीपक और बाती



चौराहे पर चौमुख दीया 
दिग्दिगंत रौशन करता 
अपार प्रसन्नता होती 
जब यायावरों को राह दिखाता 
वायु के झोंके करते जब प्रहार 
झकझोर कर रख देते उसे 
बाती काँप जाती 
अपने को अक्षम पाती 
कभी तो घटती कभी बढ़ जाती 
वह दीपक से शिकायत करती 
अपने नीचे झाँको
है कितना अंधेरा तुम्हारे तले
है तुम्हारा कार्य 
भटकों को राह दिखाना 
परोपकार करते रहना 
पर क्या मिला बदले में तुम्हें ? 
दीपक ने सोचा क्षण भर के लिए 
कुछ मिला हो या न मिला हो 
जीता हूँ आत्म संतुष्टि के लिए 
किसी पर अहसान नहीं करता 
जब तुम हो मेरे साथ 
स्नेह से भरपूर ! 


आशा सक्सेना 


25 अक्तूबर, 2017

प्रलोभन



देने को बहुत कुछ है 
यदि हो विशाल हृदय
लेने के लिए होतीं 
वर्जनाएं बहुत 
दोनों हाथों से लिया जाता 
या फैला कर आँचल 
माँगा जाता 
समेटा जाता 
जितना उसमें समाता 
अधिक की इच्छा पूर्ण नहीं होती 
अधिक भरने पर 
सब बिखर जाता 
प्रलोभन में आकर 
इच्छा विकट रूप लेती 
पैर बहक जाते 
ग़लत मार्ग अपनाते 
असाध्य आकांक्षाओं की 
पूर्ति नहीं  होती तो 
पूर्ति के लिए राह भटक जाते 
जो दिल से धनवान होते 
वे ही दरिया दिल कहलाते ! 


आशा सक्सेना 



16 अक्तूबर, 2017

दीवाली इस वर्ष

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जब ज्योति जली 
विष्णुप्रिया के मंदिर में 
तम घटा घर के हर कोने का 
जगमग मन मंदिर हुआ 
रोशनी की चकाचौध में  !
पटाखों का शोर न थमता 
क्योंकि पहली पसंद हैं यह बच्चों की 
पर इस वर्ष लीक से हट कर 
देखी एक बात विशेष  ! 
मार्ग रहा साफ़ सुथरा 
फेंका कचरा सब एक तरफ 
क्या मालूम नहीं हम जुड़े हैं 
स्वच्छता अभियान से  ?
प्रति दिन सफाई करते हैं 
घर बाहर बुहारते हैं 
हमारे लिए है प्रति दिन दीपावली  !
आम आदमी जुड़ गया है 
इस अभियान से 
हर सुबह होती है इसके आग़ाज़ से  !
घर बाहर की स्वच्छता से 
मन प्रसन्न हो जाता 
एक ही दिन नहीं अब तो 
प्रति दिन दीपोत्सव मनाया जाता ! 


आशा सक्सेना 

09 अक्तूबर, 2017

पूनम का चाँद



शरद पूनम के चाँद सा मुखमंडल है 
उस पर स्निग्धता का भाव अनोखा है 
चन्द्र किरण की शीतलता का 
आनंद बहुत अनुपम है 
आनन पर मधुर मुस्कान है 
मौसम बड़ा हरजाई है 
काले लम्बे केशों की सर्पिणी सी चोटी 
कमर तक लहराई है 
हल्की सी जुम्बिश दी है उसने 
सरक कर चूनर मुख पर आई है 
ठंडक ने दस्तक दी है हल्की सी 
वायु के हलके से झोंके से 
नव ऋतु ने ली अंगड़ाई है 
दबे कदम शरद ऋतु आई है 
पौधों ने स्पर्श किया है 
पवन के इन झोंकों को 
उन्हें भी अहसास हुआ है 
इस परिवर्तन का 
हरसिंगार की पत्तियों पर 
ओस की बूँदें थिरक आई हैं 
नव चेतन की महक दूर से आई है 
खिली कलियाँ रात में 
फूलों पर बहार आई है 
शरद पूनम का चाँद देखा है जबसे 
निगाहों में उसकी ही छवि समाई है ! 


आशा  सक्सेना 





05 अक्तूबर, 2017

मधुर झंकार

एकांत पलों में 
जाने कब मन वीणा की 
हुई मधुर झंकार 
कम्पित हुए तार 
सितार के मन लहरी के 
पर शब्द रहे मौन 
जीवन गीत के !
जिसने जिया 
उदरस्थ किया उन पलों को 
जीने का मकसद मिल गया 
सुन उस मधुर धुन को ! 
थिरकन हुई कदमों में 
तारों के कम्पन से 
हर कण में बसी 
उत्साह की भावना 
रच बस गयी मन में 
जगा आत्म विश्वास 
उस पल पर टिका कर 
सफलता की सीढ़ी चढ़ी
अब वह जीता है 
उन्हीं पलों की याद में 
जो मुखर तो न हो सके 
पर रच बस गए 
उसके अंतस में ! 


आशा सक्सेना