अतिथि हो कर  रह गए हम 
साथ रहेंगे साथ ही चलेंगे 
किया कभी वादा था 
पर झूटा निकला 
समय के साथ चल न सके 
आधुनिकता की दोड़ में 
बहुत पिछड़ गए हम 
अक्सर यही सुनने को मिलता 
सोच बहुत पुरानी हमारी 
यदि साथ समय के
न चल पाए 
लोग क्या कहेंगे ?
कल्पना थी 
एक छोटे से घर की 
मिलजुल कर
एक साथ रहने की 
मिल बांट कर 
सुख दुःख सहने की 
कभी सच न हो पाई 
सब ने साथ छोड़ा 
खड़े हैं विघटन के कगार पर 
आज के संदर्भ में
कोई नहीं अपना 
अतिथि बन कर रह गए हैं 
अपने ही घर में 
ना खुद का अस्तित्व  है 
हर बार दूसरों की सलाह
पर चलने को बाध्य 
जो कभी अपने कहलाते थे 
हुए बहुत दूर दराज के 
खुद का वजूद  ही 
कहीं खो गया है 
रिश्तों की दूकान लगी है 
पर कोई न अपना
सच्चे अर्थों में 
भीड़ में अकेले खड़े हैं 
घर में हमारे लिए
कोई जगह नहीं है |
आशा 

