छूटी हाथों से पतवार 
सह न पाई वायु का वार 
नाव चली उस ओर
जिधर हवा ले चली |
  नदिया की धारा में नौका ने    
  बह कर किनारा छोड़ दिया 
बीच का मार्ग अपना लिया 
 चली
उस ओर जिधर हवा ने रुख किया |
 वायु
की तीव्रता ने उसको  
 बीच
नदी की ओर खींच 
 वह  मार्ग भी  भटकाया 
हाथों से पतवार छूट गई |
नौका हिचकोले लेने लगी 
कोई सहारा नहीं पा कर 
आख़िरी सहारा याद आया 
प्रभु को बार बार  सुमिरन किया |
हे नौका के खिवैया तारो मुझे 
इस भवसागर से बाहर निकालो 
पतवार हो तुम्ही मेरी 
इतना तो उपकार करो |
मैं  तुम्हें भूली मेरी भूल हुई 
 दुनिया की रंगरलियों में खोई 
अब याद आई तुम्हारी
 जब उलझी इस दलदल में |
हे ईश्वर  मुझे किनारे  तक पहुंचा दो
क्षमा चाहती हूँ तुमसे 
सुमिरन सदा तुम्हें  करूंगी 
हाथों से तुम्हारी पतवार न छोडूंगी|
आशा 



