खाली
स्याही की बोतल 
 पैन
नहीं लिखने को 
क्या करू कैसे लिखूं |
ऊपर से रौशनी भी नहीं
 कुछ
भी दिखाई नहीं देता 
मन  में
भाव उमंग लेते   है 
लिखने की इच्छा भी बहुत है 
पर साधन नहीं जुट पाते हैं |
किस विधा में लिखूं सोच नहीं पाती 
भाषा पर पकड़ नहीं मजबूत 
मन में भावना  बलवती 
यहीं पर मात खा जाती हूँ |
कभी सोचती हूँ कुछ और शौक पालूँ 
 कुछ
न करने से तो अच्छा है 
जितना बने उतना करू
थोड़ा पढूं कुछ तो लिखूं |
पर फिर खुद की कमियाँ 
नजर आने लगती है 
कोई कार्य अधिक समय तक 
 कर
नहीं सकती |
मन में उलझने बढ़ने लगती हैं 
मैं सोचती कुछ हूँ और करती कुछ और 
तभी सफलता से रहती मीलों  दूर 
क्या करू इस बढ़ती उम्र के साथ 
सामंजस्य स्थापित कर  नहीं पाती |
जानती हूँ सब दिन एक सामान नहीं होते 
बीते दिनों को याद करने से क्या लाभ 
होता मन में क्षोभ कुछ भी हांसिल नहीं होता
 हाथ
रीते ही रह जाते है और दिमाग कुंद |
आशा 
