जमाने का है दस्तूर यही 
हम अलग कहाँ हैं उससे  
 जैसे  रीत रिवाज  होगे  
 उस में ही बहते जाएंगे |
चलन जमाने का भी देखेंगे 
जो भी  रंग होगा दुनिया का 
 उसी में रंगते  जाएंगे 
सुख दुःख  में शामिल होंगे |
समाज से अलग कभी 
सोच भी न पाएंगे 
अलगाव सहन नहीं होगा 
उसकी धारा में बहते जाएंगे |
अगर अलग हुए समाज से
 अपना वजूद खो देंगे
 इसे सहन न कर पाएंगे 
बिना अस्तित्व के  कैसे जी पाएंगे 
आशा
आशा


