सुबह काम शाम काम 
ज़रा भी नहीं आराम 
  अब होने
लगी है थकान 
जर्जर  हुआ शरीर |
पीछे छूटे खट्टे
मीठे
 अनुभवों के निशान 
मस्तिष्क  की स्लेट पर  
पुरानी यादों के रूप
में |
समय लौट नहीं पाया 
 बहुत साथ दिया उसने  
पहले भी साथ  निभाया  
अब भी निभाता है |
वक्त कब पीछे छूटा याद नहीं रहा 
जब तक ताकत थी शरीर
में 
बढ़ती उम्र के तकाजे
से 
कब तक बचे रहेंगे |
है यही सत्य जीवन का
कैसे भूल गए  
एक दिन ऐसा भी होगा
 पलग पर पड़े रहेंगे |
 बीते कल की  बातें 
 तस्वीरों  की तरह
 एक के बाद एक 
आँखों के केनवास पर से गुजरेंगी |
यादें ताजी हो
जाएंगी 
बापिस बचपन में जाने
का 
खेल खेलने का मन
होगा 
पर केवल कल्पना में|
पर केवल कल्पना में|
आशा 


