पदचाप तुम्हारी धीमीं सी 
कानों में रस घोले 
था इंतज़ार तुम्हारा ही 
यह झूट नहीं है प्रभु मेरे |
जब भी चाहा तुम्हें बुलाना 
अर्जी मेरी स्वीकारी तुमने 
अधिक इंतज़ार न करवाया 
धीरे से पग धरे कुटिया में |
तुम्हारी हर आहट की है पहचान मुझे  
कितनी भी गहरी नींद लगी हो 
या  व्यस्तता रही  हो 
तुम्हारी पदचाप का अनुसरण है प्रिय मुझे |
इसे मेरी  भक्ति  कहो  
या जो चाहे नाम दो
 इससे  मुझे वंचित न करो 
 यही  है  मेरा अनुराग तुमसे |
चाहे कोई  इसे अंधभक्ति कहे 
 है मेरे जीने का संबल यही 
अपना सेवक जान मुझे 
चरणों में दो स्थान मुझे |
हूँ एक छोटा सा व्यक्ति 
तुम्हारे चरणों की धुल बराबर 
यही  समझ स्वीकार करो 
 मेरा बेड़ा पार करो | 
आशा 




