मन की वीणा बाज रही है
धर की दीवारें गूँज रहीं
मीठे मधुर संगीत से मन खुशी से डोले
है ऐसा क्या विशेष तुम्हारी सीरत में |
कुछ तो है तुममें ख़ास
मुझे तुम्हारी ओर खीच रहा है
है आकर्षण या कुछ और
मेरी समझ से है परे |
मैं जान नहीं पाया तुम्हारी मर्जी
कितनी बार तुमसे आग्रह किया
बार बार तुमसे जानना चाहा
पर सारे प्रयत्न विफल रहे |
है तुम्हारे मन में क्या
क्या कभी मुखारबिंद से बोलोगी
या यूँ ही मौन रहोगी
पर कब तक कोई समय सीमा तो होगी |
मुझसे यह दूरी अब सहन नहीं होती
जो चाहोगी वही करूंगा
पर फिर से मुझे इस तरह सताना
तुम्हें शोभा नहीं देता |
कोई भी कारण हो मुझसे कहोगी
मनमानी नहीं करोगी वीणा सी बजोगी
मैं तुम्हारी हर बात मानता आया हूँ
तुम भी वादा खिलाफी नहीं करोगी |
आशा