मन अशांत
 खोज रहा सुकून 
चंद पलों का
 होने लगा ऐसा क्यूँ ?
है  अनजान  
कारणों की खोज से 
क्या विकल्प 
खोजा है अब तक 
मन बेचैन
जब चाहे उचते 
स्थिर न रहे  
बदले की भावना 
सर उठाए 
मन  से 
नियंत्रण 
उठता जाए
 यह कैसा सोच 
है 
दुविधा में है
 रुकने  का नाम नहीं 
जितना सोचो 
तकरार बनी रहती 
संतप्त  मन 
अहम् और मन की 
 हल खोजना 
है  भी नहीं आसान 
जितना दिखाई दे 
यही सच  है 
कोई  होता विकल्प | 
आशा






