कब कहा है
किसीने कब कहा
कहता गया
प्यार से या रोष से
मालूम नहीं
चेहरे के भाव ही
साफ नहीं हैं
जब आते जाते हैं
दीखते नहीं
मन की इच्छा चाहे
आजाए आगे
कितनी बलवती
हो एहसास
बदले तेवर का
भाव मन का
अंदाज न लगता
लगाव लिए
या प्यार में लिपटा
सराबोर है
भीगा तन मन है
बड़ी समस्या
लगाव अजीब सा
मन के भाव
छूटे बाण मुंह से
निकल रहे
जब मन को भेदते
चलनी होता
दिल टूटे कांच सा
बिखर जाता
प्यार लगाव न होता
कुछ और हो जाता |