26 अगस्त, 2012
25 अगस्त, 2012
गोरैया बचाओ
उस कार्य से मोहब्बत करो
जिससे तुम्हें सुकून मिले
कुछ शान्ति का अनुभाव हो
कुछ करने का अहसास जगे |
गौरैया बचाओ
दाना चिड़ियों को खिलाओ
पक्षिओं से प्यार करो
अपना घर आबाद करो |
आशा
24 अगस्त, 2012
असीम कृपा उसकी
किया कभी ना पूजन अर्चन
ना ही दान धर्म किया
करतल ध्वनि के साथ
ना ही भजन कीर्तन
किया
पोथी भी कोइ न पढ़ी
छप्पन व्यंजन सजा थाल में
भोग भी न लगा पाया |
पर उस पर अटल विश्वास से
कर्म किया निष्काम भाव से
हो दृढ़ संकल्प कदम बढ़ाए
निष्ठा से पूर्ण मनोयोग से
कर्म स्थली को जाना परखा
उस पर ही ध्यानकिया केंद्रित
असीम कृपा उसकी हुई
बिना मांगे मुराद मिली
तभी तो यह जान पाया
छप्पन भोग से नही कोइ नाता
है केवल वह भाव का भूखा
असीम कृपा जब उसकी होगी
कहीं कमीं नहीं होगी |
आशा
आशा
19 अगस्त, 2012
सबब उदासी का
रहती निष्प्रह नितांत अकेली
दिखती मितभाषी
स्मित मुस्कान बिखेरती
उदासी फिर भी छाई रहती
उससे अलग न हो पाती
पर सबब उदासी का
किसी से न बांटती
जब भी मन टटोलना चाहा
शब्द अधरों तकआकार रुक जाते
अश्रुओं के आवेगा में खो जाते
असहज हो अपने आप में खो जाती
फिर भी हर बात उसकी
अपनी और आकृष्ट करती
कई विचार आते जाते
पर निष्कर्ष तक न पहुच पाते
एक दिन वह चली गयी
संपर्क सूत्र तब भी ना टूटे
समाज सेवा ध्येय बनाया
पूरी निष्ठा सेअपनाया
व्यस्तता बढती गयी
उदासी फिर भी न गयी
वह दुनिया भी छोड़ गयी
कोइ उसे समझ ना पाया
क्या चाहती थी जान न पाया
था क्या राज उदासी का
समझ नहीं पाया
राज राज ही रह गया
उसी के साथ चला गया |
आशा
उदासी फिर भी छाई रहती
उससे अलग न हो पाती
पर सबब उदासी का
किसी से न बांटती
जब भी मन टटोलना चाहा
शब्द अधरों तकआकार रुक जाते
अश्रुओं के आवेगा में खो जाते
असहज हो अपने आप में खो जाती
फिर भी हर बात उसकी
अपनी और आकृष्ट करती
कई विचार आते जाते
पर निष्कर्ष तक न पहुच पाते
एक दिन वह चली गयी
संपर्क सूत्र तब भी ना टूटे
समाज सेवा ध्येय बनाया
पूरी निष्ठा सेअपनाया
व्यस्तता बढती गयी
उदासी फिर भी न गयी
वह दुनिया भी छोड़ गयी
कोइ उसे समझ ना पाया
क्या चाहती थी जान न पाया
था क्या राज उदासी का
समझ नहीं पाया
राज राज ही रह गया
उसी के साथ चला गया |
आशा
16 अगस्त, 2012
उपहार प्रकृति के
नव निधि आठों सिद्धि छिपी
इस वृह्द वितान में
जब भी जलधर खुश हो झूमें
रिमझिम बरखा बरसे
धरती अवगाहन करती
अपनी प्रसन्नता बिखेरती
हरियाली के रूप में |
नदियां नाले हो जल प्लावित
बहकते ,उफनते उद्द्वेलित हुए
बहा ले चले सभी अवांछित
अब उनका स्वच्छ जल
है संकेत उनकी उत्फुल्लता का
वह खुशी शब्दों में व्यक्त न हो पाई
पर ध्वनि अपने मन की कह गयी |
पर सागर है धीर गंभीर
जाने कितना गरल समेटा
उसने अपने उर में
कोइ प्रभाव उस पर न हुआ
रहा शांत स्थिर तब भी
|
14 अगस्त, 2012
उत्साह कहीं खो गया
उत्साह कहीं खोगया
जब स्वतंत्र हुए बहुत खुश थे
था गुमान उपलब्धि पर
उत्साह से भरे थे
रहता था इंतज़ार
स्वतन्त्रता दिवस का
स्वतन्त्रता दिवस का
इसे त्यौहार सा मनाने का
फिर सर उठाया चुपके से
अनगिनत समस्याओं ने
सोचा समय तो लगेगा
समृद्धि के आगमन
में
पर ऐसा कुछ भी न हुआ
दूकान लगी समस्याओं की
विसंगतियाँ बढ़ने लगीं
दरार पड़ी भाईचारे में
हुआ धन वितरण असमान
गरीब और गरीब हो गया
धनिक वर्ग की चांदी हुई
धनिक वर्ग की चांदी हुई
भृष्टाचार ने सीमा लांघी
महंगाई भी पीछे न रही
बढती हुई जनसंख्या ने
प्राकृतिक आपदाओं ने
समृद्धि पर रोक लगाई
आम आदमी पिसने लगा
समस्याओं की चक्की में
प्रतिवर्ष स्वतन्त्रता दिवस
नए स्वप्न सजा जाता
तिरंगे की छाँव तले
झूठे वादे करवाता
झूठे वादे करवाता
पर सपने सच नहीं होते
चीनी की मिठास भी
होने लगी कम कम सी
धुनें देश भक्ति गीतों की
आकृष्ट अब नहीं
करतीं
लगती सब औपचारिकता
उत्साह कहीं खो गया
पहले भी विकासशील थे
आज भी वहीँ हैं
आज भी वहीँ हैं
लंबी अवधि के बाद भी
आगे नहीं बढे हैं |
समय का काँटा
थम सा गया है
थम सा गया है
समृद्धि से कोसों दूर
अब भी जी रहे हैं
है बड़ा अंतर सिद्धांत
और व्यवहार में |
आशा
आशा
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