29 जनवरी, 2015
28 जनवरी, 2015
संपदा
वनस्पति के बिना
दुखी है प्रजा !
स्वप्न में आये
हरियाये पल्लव
मन हर्षाये !
वनसंपदा
मूल्यवान जब हो
देश सफल !
रंग बिरंगी
है फूलों की टोकरी
उपवन में !
जड़ें जमाये
वनस्पति देश की
पश्चिम में भी !
जलसंपदा
बहुत मूल्यवान
सबके लिए !
पहचान है
हरीतिमा हमारी
सबसे न्यारी !
पीत वासना
सुमुखी हरीतिमा
मन को छूती !
आशा
26 जनवरी, 2015
अस्थिर मन
खिला कमल भ्रमर हुए हैं मुग्ध
आकर्षित हैं
वाणी मधुर है स्मित मुस्कान
दिल जीतती
कोयल काली आम की डाली पर
सुर मधुर
मन चंचल उड़ता पक्षियों सा
आकाश छूता
होती हताशा जब कुछ न पाता
बेचैन होता
वीणा के सुर हो गए बेसुर
कहाँ अटके
चांदनी रात महकी रातरानी
नहीं हैरानी
आधा है चाँद रात भी है हसीन
जब तुम हो
दौनों ने मिल तिनके चुनचुन
नीड़ बनाया
खाली धरोंदा उड़ गईं चिड़ियाँ
वीरान हुआ |
23 जनवरी, 2015
कान्हां तेरी लीला न्यारी
कान्हां तेरी लीला न्यारी
ममता तुझ पर जाए वारी
चुपके से घर में घुसआया
दधि खाया मुंह में लपटाया
खुद खाया मित्रों को खिलाया
राह चलत मटकी फोड़ी
गोपी से की बरजोरी
वह भी चुपके चुपके
कदम्ब की छाँव तले
ग्वाल वाल संग लिए
रास रचाया झूम झूम
बंसी की मधुर धुन सुन
गोपियाँ सुध बुध भूलीं
दौड़ी भागीआईं
तेरी ही हो कर रह गईं
तुझ से लगाया नेह अनूठा
माया मोह का बंधन छूटा
अपना आपा खो बैठीं
एक इच्छा मन में जागी
नेह बंधन ऐसा हो
जन्म जन्म तक बंधा रहे |
आशा
ममता तुझ पर जाए वारी
चुपके से घर में घुसआया
दधि खाया मुंह में लपटाया
खुद खाया मित्रों को खिलाया
राह चलत मटकी फोड़ी
गोपी से की बरजोरी
वह भी चुपके चुपके
कदम्ब की छाँव तले
ग्वाल वाल संग लिए
रास रचाया झूम झूम
बंसी की मधुर धुन सुन
गोपियाँ सुध बुध भूलीं
दौड़ी भागीआईं
तेरी ही हो कर रह गईं
तुझ से लगाया नेह अनूठा
माया मोह का बंधन छूटा
अपना आपा खो बैठीं
एक इच्छा मन में जागी
नेह बंधन ऐसा हो
जन्म जन्म तक बंधा रहे |
आशा
21 जनवरी, 2015
बंधन
प्रभु तूने यह क्या किया
जन्म मृत्यु के बंधन में बांधा
भवसागर तरना मुश्किल हुआ
कोई आकर्षण नहीं यहाँ |
जब जन्म हुआ तब कष्ट हुआ
जैसे तैसे सह लिया
बाद में जो कुछ सहा
उससे तो कम ही था |
बचपन फिर भी बीत गया
रोना हंसना तब ही जाना
भार
पड़ा जब कन्धों पर
जीना दूभर हो गया |
तब भी शिकायत थी तुमसे
पर समय न मिला उसके लिए
ज्यों ज्यों कमली भीगती गयी
मन पर भार चौगुना हुआ |
बीती जवानी वृद्ध हुआ
बुढ़ापे ने कहर बरपाया
ना मुंह में दांत न पेट में आंत
असहाय सा होता गया |
जाने कब तक जीना होगा
रिसते घावों को सीना होगा
भवसागर के बंधन से
कब छुटकारा होगा |
जाने कब मृत्यु वरन करेगी
इस जीवन से मुक्ति मिलेगी
चाहे तो पत्थर बना देना
मनुष्य का जन्म न देना भगवान |
आशा
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