है शब्द बहुत सामान्य सा
पर करतब इसके बहुत बड़े
जब भी उपयोग में लाया जाता
कुछ नया रंग दिखलाता
किन्तु परन्तु की उलझने
सदा अपने साथ लाता
जब भी शायद का उपयोग होता
वह मन में बिछे उलझनों के जाल में
ऐसा फंसता जैसे
मीन बिन जल के तड़पती
हरबार असमंजस होता हावी
क्या करे ? कैसे करे?
यह यदि किया होता
दुविधा से सरलता से निकल पाता
उलझन से छुटकारा पाता
इस शब्द की आराधना
पड़ती बहुत मंहगी
उससे बच कर जो रहता
दुखों से दूरी बनाकर चलता
वही सफल हो पाता
किन्तु , परन्तु ,क्या, क्यों ,कैसे
के जाल से मन को मुक्त कर पाता
सहज भाव से जीवन जी पाता
|आशा
|आशा