14 जून, 2023

सालगिरह



शाम हुई घर में चहलपहल हुई

आने वालों का ताता लगा

आज है सालगिरह मेरे बेटे की

केक लाए मिष्ठान लाए

सभी को सजाया टेबल पर |

तरह तरह के मुखोटे बनाए सब के लिए

सभी को पहनाए तरह तरह से सजाए

अनोखा रूप दिया सब को बच्चे खुश हुए

अपने रूप देख ,अब हुई उत्सुकता केक काटने की|

 सब्र नहीं  हुआ कब केक काटा जाए सोचा

मिष्ठान का सेवन कब हो

और कब गाने गाए जाएं जन्म दिन के

डीजे पर थिरकने का उसका मन है नाचने का |

उसने गीत भी तैयार किया था नया सा

सब को बहुत प्यारा लगा सुन कर सुनकर

उसको उपहार दिया मिलजुलकर सबने

गीत को भी सुनकर ओर उत्साहित किया |

कितने खुश थे बच्चे यह आयोजन देख

बार बार ठुमकने लगते सब के सब

अब चलने की बारी आई उदासी मुह पर छाई

धीरे धीरे जमावड़ा कम हुआ |

अब ढोलक की बारी  आई

गीत हुए महिलाओं के मन में सोचे गीत गाए

हवामें उड़ जाने का बहाना लिया

हुआ समापन सालगिरह का |

आशा सक्सेना

12 जून, 2023

तुम उसके वह तुम्हारी




तुम उसके वह तुम्हारी
 सदा उसके ही रहोगे
 उसका एक ही अरमां रहां 
 तुम से जुड़े रहने का 
 उसमें भी जब बाधा आई 
 वह सह नहीं सकी 
 उस पर विपरीत प्रभाव पडा
 मन में बगावत आयी 
 लोगों ने भांप लिया
 उसके मन में क्या है
 समझाया उपाय
 बताए अनेक upaay 
पर जब तुमने उड़े
 आश्वासन दिया 
उसको  मन को सान्त्व्ना मिली
 उसके फिर भी
 वह आशान्वित ही रही
 यही एक जिद ठानी 
 जब तुम तक पहुंची 
 अभिलाषा पूर्ण हुई 
 सबको डंके की चोट पर 
कहा है वह तुम्हारी तुम उसके हो 
 और नहीं है दौनों के बीच |
 दूसरा ना कोई हैं |


आशा सक्सेना 

11 जून, 2023

कितना कष्ट उठाया उसने

 


कितना कष्ट उठाया उसने

तुम्हारे अनुरूप बनने  के लिए

तब भी अपने को  वह बदल ना  सकी

पूरी तरह अनुकूल हो ना  सकी|

 कभी सोचा ना  था

किसी के जीवन में प्रवेश होगा इतना कठिन 

होगी कठिन परीक्षा अनुकूलन के लिए 

उसका प्रयास सफल होगा  या नहीं 

यह था किसी कार्य के प्रति समर्पण 

जब निष्कर्ष सामने आएगा मालूम पडेगा  |

आज तक हार का मुंह नहीं देखा उसने

पर गरूर से रही दूर हर हाल में

इसी लिए आभा है उसके चहरे पर

वह  होगी सफल मेरा मन कहता है |

लेखन का भी प्रयास किया उसने

अपने मन को नियंत्रित किया है उसने

जो भी उससे मिला मन मोह लिया उसने

यही मूल मन्त्र याद  किया उसने |

है यही सफलता की कुंजी

भली भाँति जान लिया उसने

अब वह पीछे पलट कर नहीं देखेगी

अपनी जीवन कुण्डली सम्हालेगी |

आशा सक्सेना 

10 जून, 2023

केवल कविता से जीवन नहीं चलता






                                                 जीवन कविता लिखने  से नहीं चलता 

 कविता खाने को नहीं देती

 जीवन व्यापन के लिए भी

 होता आवश्यक कुछ काम करना 

दौनों की आवश्यकता होती है बराबरी से |

अपनी स्थान की जरूरत कभी ना मिली 

किसी ने जब खोजा किसी एक विधा को 

उसकी  कविता के लिए

 हो जाती है राह एक सुनिश्चित 

उसका जब दिखता नजारा मन बल्लियों उछलता 

पर जीवन की रफ्तार वहीं ठहरने लगती |

दौनों की आवश्यकता जरूरी है 

एक से पूरा नहीं पड़ता जीवन के लिए 

एक है मनोरंजन के लिए 

दूसरी है जरूरी जीवन व्यापन के लिए 

जिसने महत्व दौनों का समझा

और  समय का सदुपयोग किया 

सही नियोजन किया  समझदारी से 

वही सफल हुआ अपने जीवन में |

आशा सक्सेना 




09 जून, 2023

सरस्वती वन्दना


 

नमन तुम्हें हे मां भारती 

आए हैं तुम्हारे दर पर 

अपनी आस लिए 

मेरी आस पूरी करो माता |

यही  एक इच्छा है मन में 

किसी के आगे शीश ना झुकाएं

केवल तुम्हारे सिवाय कमलासनी 

 जब आएं कोई अरदास लेकर |

जीवन की कठिनाइयां

दिखती हैं सब को

 सुख की छाया कभी कभी 

दुःख में याद तुम्हें करें |

मुझे यह सही नहीं लगता 

जब दुःख में याद करें

 सुख में पीछे ना हटें 

जब तुम्हारी कृपा होगी सर पर 

मधुर गीतों का गुंजन होगा जीवन भर 

यही सुख मिलेगा सर्वश्रेष्ठ |

नमन तुम्हें हे हंस वाहिनी 

अपने वरद  हस्त 

सदा रखना मेरे शीश पर 

सदा तेरे गुण  गान करें 

|होतुम विद्द्या की देवी 

इस गुण से  हमें नवाजो मां

नमन तुम्हें हे ज्ञान दायनी 

मेरी कामना पूर्ण करो माँ

मेरा कष्ट दूर करों माँ |

आशा सक्सेना 











 -=098&65

08 जून, 2023

जंगल में भ्रमण



                                 बागों में झूला डाला उसने

इस मनभावन मौसम में

दिल की जंग में जीता

अपने आनंद को  |

जंगल में घूमने का दिल हुआ उसका

चल दिया एक अजनवी सा

उस मार्ग पर जिधर से नदिया बहती है

कलकल ध्वनि शान्ति में बड़ी मधुर लगती 
कलाकार मन में छुपा जाग्रत हो उठाता 
जीवन जीवंत हो उठता 
कभी उदासी का ख्याल तक नहीं  आता 
यही तो चाहत थी उसकी भी 
जीवन खुशियों में जीने की 
उदासी नहीं कभीछू पाई 
यदि यही पा लिया जीवन में 
बहुत कुछ कर लिया   उसने|
आशा सक्सेना 


07 जून, 2023

शेष जीवन

वय बचपन की बीती 
एक पड़ाव मैंने जीता 
कदम रखा  किशोर वय मैं 
खिल उठी सम उम्र लोगों में 
मुझे प्यारे लगाने लगे संगी साथी 
अपनों के सिवाय यही भूल हुई मुझसे 
अपने तो अपने होते हैं 
मैंने अपनों में गैरों में भेद ण समझा 
यहीं मात खाई मैंने |
धीरे धीरे प्रतिबन्ध बढ़ने लगे 
समाज का दखल भी बढ़ा 
रिश्ते भी आने लगे 
कभी प्यार से समझाया 
कभी वरजा गया मुझे |
अब लगा तीसरी वयआने को है 
योवन आने का इशारा मिला
मुँह में चपलता देख मैं शरमाई |
अब आया वांन  प्रस्त 
बहुत व्यस्त रही तब तक 
अब मेरी विचार धारा बदली 
धर्म कर्म की और हुई आकृष्ट 
अपनी जिम्मेंदारी पूरी करली मैंने 
|अब अंत समय में भ्क़गवत भजन कर रही हूँ 
यही चाह रही मेरी |मेरी देह छोड़ने के बाद 
मेरे कर्मों को याद किया जाए |
मेरा जीवन सफल हो जाए |
आशा सक्सेना