सागर तट पर खड़ा बटोही
एक बार यह सोच रहा था
क्या वह पार उतर जाएगा
अपना सम्बल जहाँ पायेगा |
अगले क्षण वह मगन हो गया
भवसागर में विलय हो गया
पार उतरना भूल गया वह
जहाँ खड़ा था वहीं रहा वह |
पैरों पर जब हुआ प्रहार
लहरों ने झनकाये तार
उसका मोह भंग हो गया
भटका मन अनंग हो गया |
आई फिर हवा की बारी
हिला गयी मन की फुलवारी
फिर से आया वही विचार
क्या वह पार उतर जाएगा
अपना सम्बल जहाँ पायेगा |
आशा
Great philosophical and thoughtful poem. Wonderful expression. Congrats.
जवाब देंहटाएं