मैं जलती हुई  शमा हूं 
यह कैसे समझाऊं परवानों को 
तरह तरह की  भाषा जिनकी 
और जाति भी जुदा जुदा |
बिना बुलाये आते हैं 
जब तक कुछ कहना चाहूं
जल कर राख हो जाते हैं 
बदनाम मुझे कर जाते है |
मैं जलती हूं रोशनी  के लिए 
सब को राह दिखाने के लिए
एक रात का जीवन मेरा 
नहीं चाहती अहित किसी का |
इसी लिए तो कहती हूँ
 यहां रात में क्या रखा है 
छोटा सा जीवन है तुम्हारा 
आज नहीं तो कल जाना है 
जीवन का अंत तो होना है 
दिन के प्रकाश में तुम जाओ 
उन अतृप्त चिड़ियों के पास 
जिनका भोजन यदि बन पाओ 
तृप्त उन्हें तुम कर सकते हो 
तब  यह तो लोग न कह पाएगें,
मैं जलती हूं तुम्हारे लिए 
रिझाती हूं तुम्हें
अपने पास आने के लिए |
तुम एक बात मेरी सुन लो 
फिर से मेरे पास न आना 
मरने की यदि चाहत ही हो 
उन चिड़ियों के पास चले जाना 
यदि मेरी बात रास न आए 
तुमको यदि यह ना भाए 
तब  कहीं और  चले जाना 
फिर से बापस ना आना |
आशा
तुम एक बात मेरी सुन लो ,
जवाब देंहटाएंफिर से मेरे पास न आना ,
मरने की यदि चाहत ही हो ,
उन चिड़ियों के पास चले जाना
--
बहुत ही सारगर्भित रचना है!
परहित कातरता की भावना को बल देती एक सार्थक और बहुत ही प्यारी रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव युक्त कविता
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट ब्लाग4वार्ता में
विद्यार्थियों को मस्ती से पढाएं-बचपन बचाएं-बचपन बचाएं
बहुत सुंदर भाव युक्त कविता
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति....शमा की अच्छी सीख...किसी के काम आने की...
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