12 सितंबर, 2010

पिंजरे में बंद एक पक्षी

कभी स्वतंत्र विचरण करता था ,
चाहे जहां उड़ता फिरता था ,
जीने की चाह लिए एक पक्षी ,
जब पिंजरे में कैद हुआ था ,
बहुत पंख फड़फड़ाए थे ,
खुले व्योम में उड़ने के लिए ,
मन चाहा जीवन जीने के लिए ,
अपनों से मिलने के लिए ,
अस्तित्व अक्षुण्य रखने के लिए ,
पर सारे सपने बिखर गए ,
हो कर इस पिंजरे में बंद ,
मन ने यह बंधन भी,
स्वीकार कर लिया ,
फिर जब भी पिंजरे का द्वार खुला ,
बाहर जाने का मन न किया ,
शायद भय घर कर गया था ,
बाहर रहती असुरक्षा का ,
पर कुछ समय बाद ,
एक रस जीवन जी कर ,
मन में हलचल होने लगी ,
जब दृष्टि पड़ी उसकी,
अम्बर में विचरते पक्षियों पर ,
स्वतंत्र होने की लालसा ,
बल वती पुनः होने लगी ,
भय का कोहरा छटने लगा ,
ऊर्जा का आभास होने लगा ,
हों चाहे जितनी सुविधाएं ,
और बना हो सोने का ,
पर है तो आखिर पिंजरा ही ,
स्वतंत्रता की कीमत पर ,
क्या लाभ यहाँ रहने का ,
अब समय बर्बाद न कर के ,
बंधक जीवन से मुक्ति पा ,
नीलाम्बर में उड़ना चाहे ,
नए नए आयाम चुने ,
उनमे अपना स्थान बनाए ,
जैसे ही पिंजरे का द्वार खुला ,
बिना समय बर्बाद किये ,
उसने तेज उड़ान भरी ,
पास के वृक्ष की डाली पर ,
बैठ स्वतंत्रता की खुशी में ,
एक मीठी सी तान भरी |
आशा

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना!
    --

    गाँव में जबसे दरिन्दे आ गये!
    मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये!!

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  2. स्वतन्त्रता का स्वाद जब पंछी चख लेगा तो पिंजरे का जीवन बेमानी लगना स्वाभाविक है ! सुन्दर रचना !

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  3. बहुत अच्छी रचना ...........
    मान को छूने वाले शब्द और भाव हैं ......

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश कि शीघ्र उन्नत्ति के लिए आवश्यक है।

    एक वचन लेना ही होगा!, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वारूप की प्रस्तुति, पधारें

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  5. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना ..(ज्योत्सना ) 14 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. पंछी पर एक भावपूर्ण रचना बहतरीन। आभार! -: VISIT MY BLOGS :- जिसको तुम अपना कहते हो .. .......... कविता को पढ़कर तथा ब्लोग Mind and body researches को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ।

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  8. पंछी जैसे नसीब सब के हो जाएँ तो जीवन सुखी हो जाए ....
    अच्छी रचना है ....

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