02 अक्तूबर, 2010

हें हम सब एक

अँग्रेज जब होने लगा कमजोर ,
कुछ नेताओं से हाथ मिलाया ,
टुकड़े देश के करवाए ,
बीज ऐसे बोए नफरत के ,
बड़े हुए, वृक्ष बने कटीले ,
काँटों से दिल छलनी कर गए ,
जब बटवारा होने को था ,
खेली गई खूनी होली ,
परिवार अनेकों उजड गए,
कई बच्चे अनाथ हो गए ,
मन मैं बैर ऐसा पनपा ,
पीछा अब तक छूट न पाया ,
चाहे कोई बहाना हो ,
देश अशांत होता आया ,
जिनमे समझ है पढेलिखे हें ,
वे तक जान नहीं पाए ,
किस धर्म में है ऐसा ,
मनुष्य मनुष्य का,
दुश्मन होजाए ,
होता है धर्म व्वाक्तिगत ,
है व्यर्थ उसे मुद्दा बनाना ,
वह किस धर्म को मानता है ,
चेहरे पर लिखा नहीं है ,
जीवन की समाप्ति पर ,
शरीर नष्ट हो जाता है ,
होता विलीन पञ्च तत्त्व में ,
केवल अच्छे कर्म ,
याद किये जाते हें ,
वह था किस धर्म का ,
चर्चा नहीं होती ,
जमीन में दफनाया जाए ,
या अग्निदाह किया जाए ,
या बहा दिया जाए ,
किसी जल धारा में ,
क्या फर्क पडता है ,
जाने वाला तो चला गया ,
यह संसार छोड़ गया ,
फिर जीते जी क्यूँ ,
हों हंगामे इतने ,
भाई भाई न रहे ,
दुश्मनी पले हर ओर फैले ,
हो जब भी आवश्यकता ,
एक जुट होने की ,
नासमझी आड़े ना आए ,
देश के हर कौने से,
आवाज उठे सब कहें ,
हें हम सब एक ,
है देश हमारा एक |
आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. अंग्रेजों के बोये विष- बीज अब वृक्ष हो गए हैं ...
    सही आकलन है कविता में ...
    और समाधान भी ...!

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  2. bahut sacche bhav sanjoe hai aapkee ye kavita........sacchaee to ye hai ki aam aadmee to apanee rozee rotee ko lekar hee chitit hai...ye to swarthee rajneeti ka anzam hai ki ek hone hee nahee dete........
    eeshwar rajnetao ko satbuddheee de.......

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    तुम मांसहीन, तुम रक्त हीन, हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीऩ,
    तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल, हे चिर पुरान हे चिर नवीन!
    तुम पूर्ण इकाई जीवन की, जिसमें असार भव-शून्य लीन,
    आधार अमर, होगी जिस पर, भावी संस्कृति समासीन।
    कोटि-कोटि नमन बापू, ‘मनोज’ पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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  4. सामाजिक सरोकारों को समेटे एक सार्थक एवं प्रभावी अभिव्यक्ति ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

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  5. बंटवारे का दर्द लिए अच्छी प्रस्तुति

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