हे सुमन ,तुम हो शिव ,हो मंगल ,
तुम्हें मेरी सादर वंदन ,
जब तुम थे बाल सुमन ,
लोग बहुत प्यार देते थे ,
तुम्हें अनवरत देखा करते थे ,
जैसे जैसे वय बढ़ती गई ,
सौंदर्य बोध ने बहकाया ,
मदिरा का प्याला भी छलकाया,
पर कर्तव्यों से पीछे न हटे ,
हर चुनौती की स्वीकार ,
कहीं भी असफल ना रहे ,
नियमित जीवन संयत आचरण ,
जीवन के थे मूल मंत्र ,
अध्ययन ,मनन और चिंतन ,
में थी गहन पैंठ ,
मूर्धन्य साहित्यकार हुए ,
तुम्हारी कृतियों की,
कोई सानी नहीं है ,
प्रशंसकों की भी कमी नहीं है ,
इस दुनिया से दूर बहुत हो ,
पर कण कण में बसे हुए हो ,
साँसों का हिसाब किया करते थे ,
आज हो बहुत दूर उनसे ,
पहचान यहाँ की है तुमसे ,
हो वटवृक्ष ऐसे ,
जिसके आश्रय में आ कर ,
कई हस्तियाँ पनप गईं हें ,
आकाश की उचाई छू रही हें ,
है मेरा तुमको सादर नमन |
आशा
सुमन जी एक बहुत ही यशस्वी कवि थे और मालवा के साहित्यजगत के एक मजबूत स्तंभ थे ! आपने अपनी कविता के द्ववारा जो उन्हें श्रद्धांजलि दी है वह अनुकरणीय है ! सुमन जी को मेरा भी नमन !
जवाब देंहटाएंbehad sunderta ke saath likhi hai.
जवाब देंहटाएंआदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंक्या कहू मैं
साधना वैद जी सब कुछ तो बयाँ कर दिया है रचना के बारे में
सुमन जी को मेरा भी नमन !
शिव मंगल सिंह सुमन को सादर नमन ...आपकी रचना सच्ची श्रृद्धांजलि है ..
जवाब देंहटाएंबक़्हुत सुन्दर श्रद्धाँजली दी है। सुमन जी को मेरी भी विनम्र शर्द्धाँजली। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंशिव मंगल सिंह सुमन जी को सादर नमन ...आपने उन्हें अनुपम रूप में याद किया...आभार.
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'शब्द-सृजन की ओर' पर आज निराला जी की पुण्यतिथि पर स्मरण.