बातों के लच्छे
गालों के डिम्पल
और शरारत चेहरे पर
किसे खोजती आँखें तेरी
लिए मुस्कान अधरों पर
कहीं दूर बरगद के नीचे
मृगनयनी बैठी आँखें मींचे
करती इंतज़ार हर पल तेरा
चौंक जाती हर आहट पर
आँखें फिर भी नहीं खोलती
यही भरम पाले रहती
नयनों में कैद किया तुझको
दिल में बंद किया तुझको
खुलते ही पट नयनों के
तू कहीं न खो जाये
स्वप्न स्वप्न ही न रह जाए
है अपेक्षा क्या उससे
स्पष्ट क्यूँ नहीं करते
क्या चाहते हो
सच क्यूँ नहीं कहते
भ्रम जब टूट जायेगा
सत्यता जान पाएगी |
आशा
,
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंnice good
जवाब देंहटाएंKABHI APP HAMARE BLOG PE BHI AYE
जवाब देंहटाएंसत्य की शक्ति को दर्शाती सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंआदरणीया आशा अम्मा
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
बहुत सरस और जीवंत रचना है
सच क्यूं नहीं कहते ,
उसका भ्रम जब टूट जाएगा ,
अन्धकार में नहीं रहेगी ,
विस्मृत तुम्हे कर पाएगी ,
खुद भी भ्रम जाल से ,
बाहर निकल पाएगी …
लेकिन लोग हमेशा औरों को भ्रम में ही रखते हैं …
सुंदर कविता के लिए बधाई !!
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
मरीचिकाओं के जाल में दूसरों को सदैव उलझाये रखने वालों के लिये मार्ग दर्शन करती बढ़िया रचना ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमार्गदर्शन करती.. प्रेरित करती कविता अच्छी लगी...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंमार्गदर्शन करती कविता अच्छी लगी...
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