नया शहर, अनजान डगर ,
उस पर यह अँधेरी रात ,
कहाँ जायें, कैसे ढूँढें ,
एक छोटी सी छत ,
सर छुपाने के लिए ,
फुटपाथ पर कुछ लोग ,
और जलता अलाव ,
थे व्यस्त किसी बहस में ,
वहाँ पहुँच मैं ठिठक गया ,
खड़े क्यूँ हो रास्ता नापो ,
यहाँ तुम्हारा क्या काम ,
माँगी मदद रुकना चाहा ,
जबाव मिला नये अंदाज में ,
साहब है यह शहर ,
कोई किसी का नहीं यहाँ ,
सभी रहते व्यस्त अपने में ,
संवेदनायें मर चुकी हैं ,
भावनायें दफन हो गईं ,
यहाँ है बस मैं और मेरा पेट ,
कोई मकान नहीं देता ,
पहचान बताओ,
पहला वाक्य होता ,
होती अगर पहचान ,
वहीं क्यूँ नहीं जाते ,
यूँही नहीं भटकते ,
है सुबह होने में,
कुछ समय शेष ,
कुछ समय तो ,
कट ही सकता है ,
यही सोच रुक गया वहाँ ,
और सोच में डूब गया ,
तंद्रा भंग हुई ,
एक दबंग आवाज से ,
है क्या यह,
तेरे बाप का घर ,
पैसे निकाल ,
या चलता बन ,
यहाँ हर चीज बिकाऊ है ,
निजी हो या सरकारी ,
है यह जागीर मेरी ,
हफ्ता दे या फूट यहाँ से ,
कितना कड़वा अनुभव था ,
फुटपाथ है जागीर किसी की ,
इसकी तो कल्पना न थी ,
डाला हाथ जेब में ,
दिखाई हरे नोट की हरियाली ,
पत्थर से मोम हुआ वह ,
किराये के मकान
दिखाने तक की
बात कर डाली |
आशा
एक कड़वा सच से रू-ब-रू कराती रचना बेहद मार्मिक है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के साथ
कटु यथार्थ की बखिया उधेड़ती एक प्रभावशाली प्रस्तुति ! वाकई शहरों में बाहर से आये परदेशियों के लिये जीवन कितना दुष्कर हो गया है इसका सुन्दर चित्र खींचा है आपने अपनी रचना के माध्यम से ! एक अच्छी और सामयिक प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
वाह...क्या बात कह दी !!!
......कड़वा सच
बहुत अच्छी और गहरी रचना
जवाब देंहटाएंशहरी फुटपाथों की सच्चाई उजागर करती सुन्दर रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसच्चाई को दर्शाती हुई परिपक्व, सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
आदरणीय आशा जी...
जवाब देंहटाएंकड़्वे सच को इतना सटीक वर्णन ,मन को छू गया
बधाई...
यथार्थ का जीवन्त चित्रण कर दिया…………बेहतरीन्।
जवाब देंहटाएंसार्थक चित्रण
जवाब देंहटाएंdelhi ki sachchayee to bilkul yahi hai.marmik kavita.
जवाब देंहटाएंआप इसी प्रकार स्नेह से भरपूर हो प्रोत्साहन देते रहें |आपलोगों का यही स्नेह लिखने कि प्रेरणा देता है |आभार
जवाब देंहटाएंआशा