पैर पसारे भ्रष्टाचार ने
अनाचार ने,
नक्सलवादी उग्रवादी
अक्सर दीखते यहाँ वहाँ |
कोई नहीं बच पाया
मँहगाई की मार से ,
इन सब के कहर से
भटका जाने कहाँ-कहाँ |
जन सैलाब जब उमड़ा
इनके विरोध में
पर प्रयत्न सब रहे नाकाम
होता नहीं आसान
इन सब से उबरना |
है यह एक ऐसा दलदल
जो भी फँस जाता
निकल नहीं पाता
दम घुट कर रह जाता |
यह दोष है लोक तंत्र का
या प्रदेश की सरकार का
या शायद आम आदमी का
सच्चाई है क्या ?
जानना हो कैसे सम्भव
हैं सभी बराबर के दोषी
कोई नहीं अछूता इन से
जब खुद के सिर पर पड़ती है
पल्ला झाड़ लेते हैं |
असफल गठबंधन सरकारें
नेता ही नेता के दुश्मन
ढोल की पोल खोल देते
जब भी अवसर हाथ आता |
आम आदमी
मूक दृष्टा की तरह
ठगा सा देखता रहता
देता मूक सहमति
हर बात में |
क्या दोषी वह नहीं ?
वह विरोध नहीं कर पाता
मुँह मोड़ लेता सच्चाई से
इसी लिए तो पिस रहा है
खुद को धँसता पा रहा है
आज इस दल दल में |
आशा
अनाचार ने,
नक्सलवादी उग्रवादी
अक्सर दीखते यहाँ वहाँ |
कोई नहीं बच पाया
मँहगाई की मार से ,
इन सब के कहर से
भटका जाने कहाँ-कहाँ |
जन सैलाब जब उमड़ा
इनके विरोध में
पर प्रयत्न सब रहे नाकाम
होता नहीं आसान
इन सब से उबरना |
है यह एक ऐसा दलदल
जो भी फँस जाता
निकल नहीं पाता
दम घुट कर रह जाता |
यह दोष है लोक तंत्र का
या प्रदेश की सरकार का
या शायद आम आदमी का
सच्चाई है क्या ?
जानना हो कैसे सम्भव
हैं सभी बराबर के दोषी
कोई नहीं अछूता इन से
जब खुद के सिर पर पड़ती है
पल्ला झाड़ लेते हैं |
असफल गठबंधन सरकारें
नेता ही नेता के दुश्मन
ढोल की पोल खोल देते
जब भी अवसर हाथ आता |
आम आदमी
मूक दृष्टा की तरह
ठगा सा देखता रहता
देता मूक सहमति
हर बात में |
क्या दोषी वह नहीं ?
वह विरोध नहीं कर पाता
मुँह मोड़ लेता सच्चाई से
इसी लिए तो पिस रहा है
खुद को धँसता पा रहा है
आज इस दल दल में |
आशा
सही कहा आपने ...मूक दृष्ट की तरह मूक सहमति देने वाला भी कम जिम्मेदार नहीं है...
जवाब देंहटाएंव्यवस्था और भ्रष्टाचार का सच बयान कर दिया आपने !
देश में व्याप्त अराजकता और अनाचार का सजीव चित्रण किया है आपने ! जनता भी उतनी ही दोषी है जिसने देश के लिये ऐसे भ्रष्ट और अकर्मण्य नेता चुने हैं ! लेकिन प्रक्रिया ही दोषपूर्ण है तो जनता क्या करे ! यहाँ तो सभी रंगे सियार हैं ! जो नहीं हैं वो अपनी ईमानदारी की सज़ा भुगतते हैं ! बहुत ही यथार्थपरक और चुटीली रचना ! बधाई एवं आभार !
जवाब देंहटाएंप्रासंगिक और हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ हैं आशाजी.....
जवाब देंहटाएंकिसी और को दोषी क्यों ठहराएं जब हम सब ही जातिवाद.क्षेत्रवाद,भाषावाद और न जाने कौन कौन से वादों से ग्रस्त होकर लुटेरों को चुनकर सत्ता के गलियारों तक भेजते हैं.
जवाब देंहटाएंसादर
सार्थक .. बहुत आक्रोश से लिखा है आपने इस रचना को .. सच लिखा है आम आदमी बस मूक है आज ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
...सही कहा आपने किसी और को दोषी क्यों ठहराएं जब हम सब ही जातिवाद.क्षेत्रवाद से ग्रस्त होकर लुटेरों को चुनकर सत्ता के गलियारों तक भेजते हैं.