कुछ भी अधिक नहीं चाहा
जो मिला उसी को अपनाया
फिर भी जब मन में झांका
खुद को बहुत अकेला पाया |
सामंजस्य परिस्थितियों से
आज तक ना हो पाया
अपनों ने जब भी ठुकराया
गैरों ने अपना हाथ बढ़ाया |
तब भी सोच नहीं पाया
है कौन अपना कौन पराया
कब कोई भीतर घात करेगा
यह भी ना पहचान पाया |
जब भी गुत्थी सुलझानी चाही
कोई अपना नजर ना आया
है स्वार्थी दुनिया सारी
फिर भी स्वीकार ना कर पाया |
कई बार विचार आता है
सब एक से नहीं होते
कोई तो ऐसा होगा
जो निस्वार्थ भाव लिए होगा |
अब तक तलाश जारी है
जाने कब कौन
किस रूप में आए
पूर्ण रूप से अपनाए |
जो मिला उसी को अपनाया
फिर भी जब मन में झांका
खुद को बहुत अकेला पाया |
सामंजस्य परिस्थितियों से
आज तक ना हो पाया
अपनों ने जब भी ठुकराया
गैरों ने अपना हाथ बढ़ाया |
तब भी सोच नहीं पाया
है कौन अपना कौन पराया
कब कोई भीतर घात करेगा
यह भी ना पहचान पाया |
जब भी गुत्थी सुलझानी चाही
कोई अपना नजर ना आया
है स्वार्थी दुनिया सारी
फिर भी स्वीकार ना कर पाया |
कई बार विचार आता है
सब एक से नहीं होते
कोई तो ऐसा होगा
जो निस्वार्थ भाव लिए होगा |
अब तक तलाश जारी है
जाने कब कौन
किस रूप में आए
पूर्ण रूप से अपनाए |
मेरे ख्याल से ऐसा सबके साथ होता है.
जवाब देंहटाएंजब भी गुत्थी सुलझानी चाही
जवाब देंहटाएंकोई अपना नजर ना आया
है स्वार्थी दुनिया सारी
फिर भी स्वीकार ना कर पाया |... aur talaash bani rahi, bahut achhi rachna
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
...बहुत सुन्दर कविता......
bahut sunder abhivyakti ----har man ki yahi katha ...
जवाब देंहटाएंhar man ki yahi vyatha ....!!
यात्रा जारी रखिये ! कभी न कभी तो तलाश ज़रूर पूरी होगी ! सुन्दर एवं सार्थक अभिव्यक्ति ! बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंकई बार विचार आता है
जवाब देंहटाएंसब एक से नहीं होते
ekdam theek vichar hai....
तलाश जारी रखें ...
जवाब देंहटाएंकोई तो निस्वार्थ रिश्ता भी मिलेगा ...
या क्यों ना ये करें ...
खुद ही कोई रिश्वा निस्वार्थ निभाएं !
उम्मीदों की अच्छी कविता !
है मतलब की दुनिया सारी...
जवाब देंहटाएंखोज चिंतन चलता रहने दीजिये । उत्तम प्रस्तुति. आभार सहित...
man ki gaanth khol rakhiye...vyatha nadi ban kar bah jaayegi....
जवाब देंहटाएंbahut hi bhavpoorn kavita aur lekhni to aapki sashakt hai hi...badhayi
khubsurat prastuti.........
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं सार्थक अभिव्यक्ति| बधाई स्वीकार करें|
जवाब देंहटाएंजब भी गुत्थी सुलझानी चाही
जवाब देंहटाएंकोई अपना नजर ना आया
है स्वार्थी दुनिया सारी
फिर भी स्वीकार ना कर पाया |
bahut khoob
बहुत उम्दा और सटीक रचना!
जवाब देंहटाएंअब तक तलाश जारी है
जवाब देंहटाएंजाने कब कौन
किस रूप में आए
पूर्ण रूप से अपनाए |
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
शुभकामनायें !
आदरणीय आशा दी ,
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच कहा आपने "सब एक से नही होते "......सादर !
आप सब का बहुत बहुत आभार ब्लॉग पर आकार मुझे लिखने के लिए प्रेरित करने के लिए |
जवाब देंहटाएंआशा
Jeevan ki ye anant talaash khud ke andar dekhne se ti mit ti hai .... sundar bhaav leya rachna hai ...
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