12 अक्तूबर, 2011

चाहत


आँखें उसकी नील कमल सी
और कशिश उनकी ,
जब खींचेगीं बाँध पाएंगी
होगी परिक्षा उनकी |
उनका उठाना और झुक जाना
गहराई है झील की
आराधना और इन्तजार
चाहत है मन मीत की |
जाना न होगा दूर कहीं
किसी जन्नत के लिए
दूरियां घटती जाएँगी
पास आने के लिए |
कल्पनाओं की उड़ान मेरी
परवान चढती जाएगी
अब रोज ही त्यौहार होगा
आएगी घर में खुशी |
आशा


19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, बधाई

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  2. बेशक मिले संयोग से.........अच्छा रहा मिलाप....
    कहना क्या ये सत्य है ..... .अच्छा लिखती आप.....
    अच्छा लिखती आप...........सदा रहती है छाई.....
    बातो में भी मिलती है..........गहरी गहराई.....
    कह मनोज गुठली नहीं........ये तो पूरा आम......
    मेरी तरफ से आपको...........सादर नमन प्रणाम.....

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  3. बढिया प्रस्‍तुति..
    गहरे भाव...

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  4. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति|

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  5. कल्पनाओं की उड़ान मेरी
    परवान चढती जाएगी
    अब रोज ही त्यौहार होगा
    आएगी घर में खुशी |

    बहुत खूबसूरत कविता आशा जी. धन्यबाद.

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  6. झील सी इन नीली आँखों की खुमारी में तो हम भी डूबना चाहते हैं ! बहुत प्यारी रचना ! बधाई !

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  7. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति|

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  8. कल्पनाओं की उड़ान मेरी
    परवान चढती जाएगी
    अब रोज ही त्यौहार होगा
    आएगी घर में खुशी |
    bahut khub likha hai mam,,
    jai hind jai bharat

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  9. जो मैंने कहना था, मनोज भाई पहले ही चिपका गए हैं। खैर आप उस भाई की बात को इस भाई के भी मन की बात समझ कर प्रणाम स्वीकार करें। आप कि पद्य के प्रति अभूरुचि और रचनाधर्म के प्रति आप का समर्पण बहुत प्रभावित कर रहा है। नमन।


    गुजर गया एक साल

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  10. अंतरतम में प्रियतम का एहसास दिलाती पावन कृति

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  11. आपकी रचना पर टिप्पणी करना बहुत मुश्किल, सुंदर अतिसुन्दर......

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