यूँही नहीं जीता
पीता हूँ ग़म भुलाने के लिए
जीता हूँ पीने के लिए
दर्देदिल छिपाने के लिए |
मदहोश
कदम आगे जाते
वहीँ
जा कर रुक जाते
होते
अधीर अतृप्त अधर
और
अधिक की चाहत रखते
ग़म भुलाने की लालसा
यहाँ तक खींच लाई
ना हाला हलक तर कर पाई
ना हाला हलक तर कर पाई
ना ही साकी बाला आई |
लहराता
झूमता झामता
नितांत
अकेला
निढाल
सा गिरता सम्हलता
पर
सहारा किसी का न पाता |
फबतियां कानों में
पडतीं
आदतन है शराबी
घर फूँक वहीँ आता
जहाँ अपने जैसे पाता
|
सच
कोई नहीं जानता
हालेदिल
नहीं पहचानता
छींटाकशी शूल सी चुभती
फिर भी उसी ओर जाता
फिर भी उसी ओर जाता
आशा
अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएंaddiction मजबूरी है.
जवाब देंहटाएंभावमय सुन्दर रचना.
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बढ़िया.....
जवाब देंहटाएंनए नए रंग आपकी रचना में...
सादर
अनु
मदिरा का सेवन करने वाला अपनी बुरी आदतों का तो गुलाम हो ही जाता है और अपनी तथा अपने घर परिवार की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने से भी नहीं चूकता इसीलिये सबकी आलोचना का शिकार होता है ! एक अच्छी शिक्षाप्रद रचना !
जवाब देंहटाएंक्या बात है वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-935 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
ये तो नाश का ही कारण है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है.बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
वाह:बहुत सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंwaah .....
जवाब देंहटाएंbahut hu acchi rachna.....
waah bariki se dil ki bat kah di ......
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंपर ये जिंदगी जीने के लिए कोई सही राह नहीं हैं .....सादर
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