जाने कब बचपन बीता
यादें भर शेष रह गईं
थी न कोई चिंता
ना ही जिम्मेदारी
कोई
खेलना खाना और
सो जाना
चुपके से नजर बचा कर
गली के बच्चों में खेलना
पकडे जाने पर घर बुलाया जाना
कभी प्यार से कभी डपट कर
जाने से वहाँ रोका
जाना
तरसी निगाहों से
देखना
उन खेलते बच्चों को
मिट्टी के घर बनाते
सजाते सवारते
कभी तोड़ कर पुनः
बनाते
किसी से कुट्टी किसी से दोस्ती
अधिक समय तक वह भी न रहती
लड़ते झगड़ते दौड़ते
भागते
बैर मन में कोई न
पालते
ना फिक्र खाने की
ना ही चिंता घर की
ना सोच छोटे बड़े का
ना भेद भाव ऊँच नीच
का
सब साथ ही खेलते
साथ साथ रहते
वह बेचारा अकेला
उन बेजान खिलौनों से
ऊपर से अनुशासन झेले
यह करो यह न करो
वह सोच नहीं पाता
मन मसोस कर रह जाता
ललचाई निगाहों से
ताकता
उन गली के बच्चों
को
अकेलापन उसे सालता
था उसका कैसा बचपन |
आशा
KHOOBSURAT KAVITA.... BACHPAN SE PARICHAY KARATA.... ANTIM PANKTIYA MARMIK
जवाब देंहटाएंललचाई निगाहों से ताकता
जवाब देंहटाएंउन गली के बच्चों को
अकेलापन उसे सालता
था उसका कैसा बचपन,,,,,,,,
बहुत बढ़िया प्रस्तुती, बेहतरीन सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
बहुत बढ़िया प्रस्तुति...सुंदर रचना,,,,
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना......
जवाब देंहटाएंदिल को छू गयी......
सादर
अनु
सार्थक बात कही है आपने .आभार
जवाब देंहटाएंयह तो अभिभावकों को सोचना चाहिए ! व्यर्थ की बंदिशें लगा कर वे अपने ही बच्चों को कितनी बड़ी खुशी एवं अनुभव सम्पदा से वंचित कर देते हैं ! बहुत ही सुन्दर रचना ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंउसका बचपन
खुले आसमान
का एक पक्षी
इसका बचपन
पिंजरें में जैसे
हो कोई पक्षी !!
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना...
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