समस्त बंधनों से हो मुक्त
उस अनंत आकाश में
छोड़ा सब कुछ यहीं
यूँ ही इसी लोक में
बंद मुट्ठी ले कर आया था
आते वक्त भी रोया था
इस दुनिया के
प्रपंच में फँस कर
जाने कितना सह कर
इसी लोक में रहना था
आज मुट्ठी खुली हुई थी
जो पाया यहीं छोड़ा
पुरवासी परिजन छूटे
वे रोए याद किया
अच्छे कर्मों का बखान किया
पर बंद आँखें न
खुलीं
वह चिर निद्रा में सो गया
वारिध ने भी दी जलांजलि
वह बंधन मुक्त हो गया
पञ्च तत्व से बना पिंजरा
अग्नि में विलीन हो गया |
आशा
प्रेरित करती कविता..
जवाब देंहटाएंबेहत्तरीन प्रेरित करती रचना,,,,
जवाब देंहटाएंरक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
सार्थक चिंतन ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंश्रावणी पर्व और रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
देस ये बेगाना हुआ
जवाब देंहटाएंपंछी अपने देस गया ।
दर्शन भरी प्रस्तुति ।