खामोशी तुम्हारी
कह जाती बहुत कुछ
नम होती आँखें जतातीं
कुछ कुछ
अनायास बंद होती
आँखें
ले जातीं अतीत के
गलियारे में
वर्षा
अश्रु जल की गर्द हटाती
धुंधली यादों की
तस्वीरों से
पन्ने खुलते डायरी के
वे दिन भी क्या थे ?
थे दौनों साथ लिए
अटूट विश्वास
सलाहकार बनते मन की
बातें करते
उन्हें आपस में
बांटते
बदली राहें फिर भी न
भूले उन पन्नों को
होता है दर्द क्या
किसी अपने से बिछड़ने
का
है महत्त्व कितना स्नेह
के पनपने का
सौहाद्र के पलने का
है जो सोच आज
क्या तुमने भी कभी उसका
अहसास किया होगा
लंबे अंतराल ने उन
लम्हों को
बिसरा तो न दिया
होगा
कभी तो तुम्हारी
यादों में
कोइ अक्स उभरता होगा
यदि वह हो समक्ष
तुम्हारे
हालेदिल बयां करने
की
मन की परतें खोलने
की
क्या कोशिश न करोगे
या अनजानों सा व्यवहार
रखोगे
अतीत की उन तस्वीरों
को
झुठला तो न दोगे
जो आज भी झांकने
लगती हैं
कभी कभी दिल के झरोखे से |
आशा
अतीत की यादें कहाँ बिसरायी जाती हैं..बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबिसरायी जाती नही,हमने किया वितीत
जवाब देंहटाएंचाहे भी हम भूलना,याद आता अतीत,,,,,,
RECECNT POST: हम देख न सके,,,
मन की परतें खोलने की
जवाब देंहटाएंक्या कोशिश न करोगे
.................
बहुत ही उम्दा....
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबीता हुआ कभी बीतता कहाँ है...वो तो छुपा रहता हैं यहीं कहीं वर्तमान में..
६०१ वीं रचना की बधाई.
सादर
अनु
६०१ वीं...रचना...सब एक से बढ़ कर एक...बहुत बधाई...यूँ ही लिखते चलिये...अनेक शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सुकोमल सी रचना ! भीगी-भीगी सी यह प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी ! नया कीर्तिमान स्थापित करने के लिये बधाई !
जवाब देंहटाएंअतीत की यादें कहाँ बिसरायी जाती हैं..बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति....आभार
जवाब देंहटाएंयादगार यादे
जवाब देंहटाएंयादें जो बिसराई नहीं जातीं ... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपके अतीत के गलियारे में जाकर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा..
मन के भावो की कोमल अभिव्यक्ति...
सुन्दर
:-)
bahut pyari hoti hain aapki kavitayen.
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जवाब देंहटाएंथे दौनों(दोनों ) साथ लिए अटूट विश्वास....दोनों
है महत्त्व (महत्तव) कितना स्नेह के पनपने का......महत्तव.....महत्ता आदि हिंदी का शील छोटे को,आधे शब्द को ,संयुक्त अक्षर में अपनी गोद में, कंधे पे बिठाने का है .यहाँ कोई ध्वनी अंग्रेजी उच्चारण की तरह खामोश नहीं की जाती है .ज़बरन दबाई नहीं जाती है .
सौहाद्र(सौहार्द्र ) के पलने का
कोइ(कोई ) अक्स उभरता होगा......कोई ......बोल के देख लिया कीजिए शब्द को "कोइ"ऐसे लगता है जैसे रेल छूट रही है जबकि क़ोई में ध्वनी विस्तार है को...... -ई .....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है लेकिन बिंदास कहूं तो -
"आशा! क्यों पैदा करती हो निराशा" कब से एक शब्द प्रयोग सिखा रहा हूँ -----"क़ोई "
आप लिख रहीं हैं कोइ .
"कोइ" असम ,शिलांग ,देश के उत्तर पूरबी अंचल में ऐसे बीड़े (पान )को कहतें हैं जिसमें बस कच्ची सुपारी आधी काटके रखी जाती है क्योंकि बहुत गर्म होती है .खाते खाते कनपटी पसीने से भीग जाती है .इसमें कत्था चूना नहीं लगाया जाता .वैसे चूना तो किसी को लगाना भी नहीं चाहिए .लोग क्या कहेंगे .
भाव पूर्ण प्रस्तुति!
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