पेपर में कुछ नया नहीं
है मिडीया भी बेखबर नहीं
नित नए घोटाले
उनपर बहस और आक्षेप
केवल छींटाकशी और
आपस में दुर्भाव
कोइ नहीं बचा इससे
यदि थोड़ी भी शर्म बची होती
इतने घोटाले न होते
उंसके खुलासे न होते
मुंह पर स्याही न पुतती
कोइ तो बचा होता
बेदाग़ छवि जिसकी होती
श्वेत वस्त्रों पर दाग
गुनाहों के ,न होते
रोज एक धमाका होता है
किसी घोटाले का खुलासा होता है
टी .वी .पर बहस या चर्चा
लगती गली के झगडों सी
शोर में गुम हो जाता है
क्या मुद्दा था बहस का
कई बार शर्म आती यही सोच कर
ये कैसे पढ़े लिखे हैं
सामान्य शिष्टाचार से दूर
अपनी बात कहने का
और दूसरों को सुनने का
धैर्य भी नहीं रखते
शोर इतना बढ़ जाता कि
आम दर्शक ठगा सा रह जाता
सोचने को है बाध्य
क्या लाभ ऐसी बहस का
जिसका कोइ ओर ना छोर
यूँ ही समय गवाया
कुछ भी समझ न आया
सर दर्द की गोली का
खर्चा और बढ़ाया |
आशा
आज के यथार्थ की बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 29-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1047 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
"क्या लाभ ऐसी बहस का जिसका कोइ ओर ना छोर "
जवाब देंहटाएंबिलकुल यही होता है आजकल... बेमतलब की बहस जो बिना किसी हल के समाप्त हो जाती है... सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार
किसी के करे-धरे कुछ होता नहीं .बस, बहस और कागज़ी घोड़ेों की दौड़!
जवाब देंहटाएंसोचने को है बाध्य
जवाब देंहटाएंक्या लाभ ऐसी बहस का
जिसका कोइ ओर ना छोर
यूँ ही समय गवाया
कुछ भी समझ न आया
सर दर्द की गोली का
खर्चा और बढ़ाया |
आशा
भ्रष्टाचार करो ,तरक्की पाओ ,क़ानून से विदेश पद मंत्री पाओ .
बिलकुल मत शरमाओ ,जो मिल जाए खाओ ,
सर्व भक्षी कहलाओ .
बधाई इस परवेश प्रधान रचना की चुभन के लिए .
सोचने को है बाध्य
जवाब देंहटाएंक्या लाभ ऐसी बहस का
जिसका कोइ ओर ना छोर
यूँ ही समय गवाया
कुछ भी समझ न आया
सर दर्द की गोली का
खर्चा और बढ़ाया |
आशा
भ्रष्टाचार करो ,तरक्की पाओ ,क़ानून से विदेश पद मंत्री पाओ .
बिलकुल मत शरमाओ ,जो मिल जाए खाओ ,
सर्व भक्षी कहलाओ .
बधाई इस परिवेश प्रधान रचना की चुभन के लिए .
क्या लाभ ऐसी बहस का
जवाब देंहटाएंजिसका कोइ ओर ना छोर
यूँ ही समय गवाया
कुछ भी समझ न आया
सर दर्द की गोली का
खर्चा और बढ़ाया |
आशा
बिलकुल सही कहा।
सही कहा है आपने ...आज कल ये ही सब तो पढ़ने को मिलता है रोज़ रोज़
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंsach me yatharth...
जवाब देंहटाएंसार्थक सटीक प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST LINK...: खता,,,
बड़ी बेबाकी से यथार्थ का चित्रण किया है ! टी वी पर जो बहसें आती है वे वाकई में सर दुखाने वाली ही होती हैं ! ना तो किसी भी प्रतिभागी का मत स्पष्ट हो पाता है ना ही चर्चा किसी निष्कर्ष पर पहुँचती है !
जवाब देंहटाएंबहुत बेबाकी से लिखा है आपने ..
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