कई  बार विचारों में उलझी 
पग आगे बढाए पर
हिचकिचाए 
थम गए एक मोड
पर अकारण 
उलझन बढ़ी आशंका
जन्मी 
कहीं कोइ
अनर्थ न हो जाए 
मन पर से
जाला झटका 
मार्ग
प्रशस्त किया अपना 
पर बिल्ली
राह काट गयी 
झुक कर एक
पत्थर उठाया 
आगे फेंक आगे
बढ़ी 
एकाएक छींक आ गयी
एकाएक छींक आ गयी
शुभ अशुभ के
चक्र में फसी 
अनजाना भय  हावी हुआ 
मन को बार
बार समझाया 
पर वह स्थिर
न हो पाया 
सोचा बापिस लौट चलूँ 
फिर खुद पर
ही हंसी आई 
इतना पढना
व्यर्थ लगा 
यदि वहम से
न  बच पाई 
मन कडा कर चल पड़ीं
मन कडा कर चल पड़ीं
बेखौफ मंजिल
तक पहुँची 
अंधविश्वास से ना घिरी |
अंधविश्वास से ना घिरी |
आशा 

बेहद भावपूर्ण सुन्दर रचना, बहुत-2 बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंसादर, अरुन शर्मा
www.arunsblog.in
बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
behad khubsurat abhivaykti.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव,उत्कृष्ट रचना,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : प्यार न भूले,,,
बहुत बढ़िया ! अंधविश्वास के बंधन काट फेंकना ही श्रेयस्कर है ! वहम हावी होगा तो चित्त कभी स्थिर नहीं हो पायेगा ! अच्छी प्रस्तुति ! कल विदेश यात्रा के लिये रवाना होना है ! अब लगभग एक हफ्ते बाद दिखाई दूँगी ब्लॉग पर ! तब तक के लिये विदा !
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देती हुई सीधी सच्ची रचना .
जवाब देंहटाएंकदम-कदम पर घेरतीं, उलझन हमें अनेक।
जवाब देंहटाएंकिन्तु कभी मत छोड़ना, अपना बुद्धिविवेक।।
सरलता से भावों को समेटा है आपने.
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना .....
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