मन में घुटन भरता 
अहसास एकाकीपन का 
बेचैन कर जाता |
जब भी होता शोर शराबा 
मन स्थिर ना रहता 
कोलाहल  सहन न होता 
मन चंचल होता |
है  यह कैसी रिक्तता 
स्वनिर्मित ही सही 
चंचल मन की हलचल 
उसे मिटने भी नहीं देती |
दोराहे पर खड़ी मैं सोचती 
क्या  करू ? कैसे रहूँ ?
यदि  मौन रह सुकून मिलता 
शायद मुखर कोई न होता |
शोर  सहन नहीं होता 
एकाकीपन मन को डसता 
दुविधा  में मन रहता 
कुछ करने का मन ना होता 
खोजती हूँ शान्ति 
जो बाहर नहीं मिलती 
तब  सन्नाटा अच्छा लगता 
मन विचलित नहीं होता 
दुविधा का शमन होता |
आशा 

आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
......सार्थक रचना !
बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार आपका ||
बहुत सुन्दए प्रस्तुति..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: मातृभूमि,
खोजती हूँ शान्ति
जवाब देंहटाएंजो बाहर नहीं मिलती
तब सन्नाटा अच्छा लगता
मन विचलित नहीं होता
दुविधा का शमन होता |
...बिल्कुल सच...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
खोजती हूँ शान्ति
जवाब देंहटाएंजो बाहर नहीं मिलती
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बहुत बढ़िया माँ .. आप यकीनन बहुत सहज और ह्रदय से लिखती हैं ....
खोजती हूँ शान्ति
जवाब देंहटाएंजो बाहर नहीं मिलती
तब सन्नाटा अच्छा लगता
..सच कहा आपने बाहर की अशांति से मन का सन्नाटा भला ....
बहुत बढ़िया रचना
आती है ऐसी भी अवस्था जहां न शोर अच्छा लगता है और न ही एकाकीपन ।
जवाब देंहटाएंमन की व्यग्रता को सुन्दर शब्दों में पिरोया है ! बहुर सशक्त एवं सार्थक रचना ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबाहर जिसे भी मिला
जवाब देंहटाएंघुटन ही था
जो भी आया भीतर
बदला-सा था!