अंतःकरण से शब्द निकले
चुने बुने और फैलाए
दिए नए आयाम उन्हें
और जाल बुनता गया
थम न सका प्रवाह
एक जखीरा बनता गया
सम्यक दृष्टि से देखा
नया रूप नजर आया
जिसने जैसा सोचा
वैसा ही अर्थ निकल पाया
पहले भाव
शून्य से थे
धीरे धीरे प्रखर हुए
सार्थकता का बोध हुआ
उत्साह द्विगुणित हुआ
अदभुद सा अहसास लिए
नया करने का मन बना
कई भ्रांतियां मन में थीं
समाधान उनका हुआ
है यह विधा ही ऐसी
दिन रात व्यस्तता रहती
समय ठहर सा जाता
मन उसी में रमा रहता
है प्रभाव उन शब्दों का
जो जुडने को मचलते
बाक्यों में बदलते
बाक्यों में बदलते
उनसे अनजाने में
कई रचनाएं बनतीं
कविता से कविता बनती
आवृत्ति विचारों की होती
स्वतः ही
मन खिचता
फिर से फँस जाता
शब्दों के जाल में |
आशा
शब्द का प्रवाह ही है कविता -सुन्दर प्रवाह
जवाब देंहटाएंNew post तुम ही हो दामिनी।
कविता से कविता बनती ...
जवाब देंहटाएं---------------------
बस उम्दा ही कहूँगा
शब्द शक्ति है,शब्द भाव है.
जवाब देंहटाएंशब्द सदा अनमोल,
शब्द बनाये शब्द बिगाडे.
तोल मोल के बोल,
recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरेया ||
शब्द मनो भानो का दर्पण है..
जवाब देंहटाएंयूँ ही तो होता है कविता का सृजन...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
सादर
अनु
शब्दों का आकर्षण ऐसा ही प्रबल होता है ! रचनाएं स्वत: ही आकार लेने लगती हैं ! इनसे स्वयं को विलग करना संभव नहीं ! बहुत सुन्दर एवं प्रभावी रचना !
जवाब देंहटाएंकविता से कविता बनती
जवाब देंहटाएंआवृत्ति विचारों की होती
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति... आभार
शब्दों की बाजीगरी शब्दों की काया और माया ,कीमियागिरी शब्द बने मरहम ,बने घाव ,दें फिर फिर कर अभियक्त होने का सुख .बढिया प्रस्तुति .शब्द शिल्प पर .
जवाब देंहटाएंआवृत्ति विचारों की होती
जवाब देंहटाएंस्वतः ही मन खिचता.....sahi men.
बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंशब्दों के जाल से....
:-)