अपना व़जूद कहाँ खोजूं
फलक पर ,जमीन पर
या जल के अन्धकार के अन्दर
सोच सोच कर थक गयी
लगा पहुँच से बाहर
वह
मन मसोस कर रह गयी
फिर उठी उठ कर
सम्हली
बंधनों में बंधा खुद को देख
कोशिश की मुक्त
होने की
असफल रही आहत हुई
निराशा ही हाथ लगी
रौशनी की एक किरण से
एक अंकुर आस का जागा
जाने कब प्रस्फुटित हुआ
नव चेतना से भरी
खोजने लगी अस्तित्व अपना
वह सोया पडा था
घर के ही एक कौने में
दुबका हुआ था वहीँ
जहां किसी की नजर न थी
जागृति ने झझकोरा
क्यूं व्यर्थ उसे गवाऊं
हैं ऐसे कई कार्य
जो अधूरे मेरे बिना
तभी एक अहसास जागा
वह जगह मेरी नहीं
क्यूं जान नहीं पाई
है व़जूद मेरा अपना
यहीं इसी दुनिया में |
आशा
आशा
है व़जूद मेरा अपना यहीं इसी दुनिया में,,,
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार उम्दा प्रस्तुति,,,
recent post: बसंती रंग छा गया
बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ !!!
जवाब देंहटाएंसादर नमन ।।
जवाब देंहटाएंबढ़िया है -
शुभकामनायें- ||
बहुत खूब ,बहुत खूब ,बहुत खूब ,कृपया आहात शब्द ठीक कर लें -आहत
जवाब देंहटाएंवसंत पंचमी की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंLatest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!बेहतरीन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना है जीजी ! हमारा अस्तित्व हमारी परछाईं की तरह ही है जो कभी हमसे जुदा नहीं हो सकता ! बस प्रकाश के प्रत्यावर्तन से उसका आकार प्रकार भले ही बदल जाए लेकिन वजूद ख़त्म नहीं होता ! सार्थक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंदुनिया का बजूद जिससे हो
जवाब देंहटाएंउसी को बजूद तलाशनी पड़ती है
खामोश करती रचना
sarthak abhivaykti....
जवाब देंहटाएंआशा जी को रूप जी को सादर नमन,सुन्दर रचना
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