काटे न कटें रतियाँ ,वे अबहूँ न आए |
बाट निहारूं द्वार खडी,विचलित मन हो जाय ||
भूली सारे राग रंग ,कोई रंग न भाय |
पिया का रंग ऐसा चढा ,उस में रंगती जाय||
सब अधूरा सा लगता ,उन बिन रहा न जाय |
सब ठिठोली भूल गयी ,होली नहीं सुहाय ||
रातें जस तस कट गईं ,पर दिन कट ना पाय |
बेचैनी बढ़ती गयी ,नयना छलकत जाय ||
रातें जस तस कट गईं ,पर दिन कट ना पाय |
बेचैनी बढ़ती गयी ,नयना छलकत जाय ||
|
उसमें रंगती जाय ....
जवाब देंहटाएं-------------
badhiya
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,सादर आभार.
जवाब देंहटाएंबढ़िया कथ्य -
जवाब देंहटाएंआभार आदरेया-
विरह ओर प्रतीक्षा के रंग में रंगी प्रीत की रचना ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर ...
रातें जसतस कट गईं,पर दिन कट ना पाय |
जवाब देंहटाएंबेचैनी बढ़ती गयी , नयना छलकत जाय ||
वाह ,,,बहुत उम्दा,,, ,,,
Recent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
प्रेमपगी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 18-03-2013 को सोमवारीय चर्चा : चर्चामंच-1187 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुद्नर आभार अपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे
भई वाह ! विरह की कसक लिए बहुत सुंदर रचना ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंछलकत जाए....।
जवाब देंहटाएं