जन्म से आज तक
 कष्टों से नाता रहा 
तुझ को न भूल पाया 
तुझ में खोना चाहा |
हैं प्रश्न  अनुत्तरित 
बारम्बार सताते  फिर भी 
है तेरा मेरा क्या नाता
 यह जग मुझे क्यूं भाता
यह छूट क्यूं नहीं पाता ?
है 
एक सेतु दौनों के बीच 
इह लोक से जाने के लिए 
तुझसे मिलने के लिए 
पर इतना सक्षम नहीं 
स्वयं पहुँच नहीं पाता  |
जाने कितनों को पहुंचाया 
हर बार बापिसी हुई 
पृथ्वी पर भार बढाया 
आकांक्षा अधूरी रही |
तुझे खोजने में 
तुझ तक पहुँचने में 
त्रिशंकु हो कर रहा गया 
प्रश्न वहीं का वहीं 
अनुत्तरित ही रहा 
है तेरा मेरा क्या नाता 
आशा 

sashakt sunder abhivyakti .....!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुपमा जी |
हटाएंआशा
behtarin.....
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद अरुण जी
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जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन ! बेहतरीन रचना !!
RECENT POST : बिखरे स्वर.
टिप्पणी हेतु आभार |
हटाएंआशा
गहन अभिव्यक्ति ! सुंदर सार्थक रचना ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
हटाएंआशा
गहन भाव ,सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंlatest post कानून और दंड
atest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
टिप्पणी हेतु धन्यवाद कालीपद जी |
हटाएंबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुषमा जी
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंबहुत ही गहन अनुभूति लिए बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुती आपका आभार आदरेया आशा जी।
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद राजेन्द्र जी |
हटाएंआशा
सूचना हेतु आभार अरुण जी |
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सनी
जवाब देंहटाएंbahut acchi kavita likhi hai,
जवाब देंहटाएंकल 19/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
atiuttam.
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद |
हटाएंआशा