झूठ नामां
सुना था झूठ के पैर नहीं होते
आज नहीं को कल
मुखोटा उतर जाता है
वह छुप नहीं पाता |
पर अब देख भी लिया
भेट हुई एक ऐसे बन्दे से
थी जिसकी झूठ से गहरी यारी
इसकी ही
बुनियाद पर उसने
शादी तक रचा डाली
पहले पत्नी दुखी हुई
फिर निभाती चली गयी |
प्रथम भेट में अपने को उसने
इंजीनियर
बता प्रभावित किया
अपने चेहरे मोहरे का
पूरा
पूरा लाभ उठाया |
जब भी मिला किसी से
बड़े झूठ के साथ मिला
घर पर तो मुझे वह
खानसामा
ही नजर आया |
पत्नी ने भी बात बनाई
खाना बनाना और खिलाना
इनको बहुत भाता है
तभी तो हैं अवकाश पर
आप लोग जो आए हैं |
एक दिन हम जा पहुंचे
उसके बताए ऑफिस में
बहुत खोजा फिर भी न मिला
तभी एक ने बतलाया
अरे आप किसे खोज रहे
वह कोइ इंजीनियर न था
फर्जी अंक सूची लाया था
केवल बाबू लगा था |
जब पोल पकड़ी गयी
वह नौकरी भी उसकी गयी
अब है वह बेरोजगार
एक झूठ
हो तो गिनाए कोई
समूचा झूठ में था लिप्त
सच से परहेज किये था |
उसने कभी सच बोला ही नहीं
था झूठों का सरदार
केवल झूठ
का भण्डार |
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जवाब देंहटाएंसच है एक झूट को छुपाने के लिए सौ झूट बोलने पड़ते है और हो जाते हैं झुटो का भंडार | बहुत बढ़िया रचना|
जवाब देंहटाएंअभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!
सच कहा,झूठ के पैर नही होते,,,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सुंदर रचना !
RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
बहुत सही कहा ...
जवाब देंहटाएंऐसे झूठों के चेहरों पर चढ़ा मुलम्मा जल्दी ही उतर भी जाता है ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंbahut sundar............ sach me !!
जवाब देंहटाएंपिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
जवाब देंहटाएंकई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं (27) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !