निशा के आगोश में
स्वप्न सजते हैं
अनदेखे अक्स
पटल पर उभरते हैं
क्या कहते हैं ?
याद नहीं रहते
बस
सरिता जल से
कल कल बहते हैं |
यही चित्र मधुर स्वर
मन को बांधे रखते हैं
प्रातः होते ही
सब कुछ बदल जाता है
हरी दूब और सुनहरी धूप
ओस से नहाए वृक्ष
कलरव करते पंख पखेरू
सब कहीं खो जाते
रह जाता ठोस धरातल
कर्तव्यों का बोझ लिए
कदम आतुर चौके में जाने को
दिन के काम दीखने लगते
होते स्वप्न तिरोहित |
आशा
कितनी सुन्दर है स्वप्न की दुनिया... बहुत सुन्दर लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद |
हटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंस्वप्नों का संसार होता ही इतना निराला है ! सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना
हटाएंबहुत सुन्दर .....
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद सर |
हटाएंक्षणिक ही सही - एक अतीन्द्रय लोक के दर्शन करा जाते हैं सपने!
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद दीदी |
हटाएंसूचना हेतु धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद
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