बीज भावों के बोए
शब्द जल से सींचे
वे वहीं निंद्रा
में डूबे 
बंद  आँखें न खोल सके 
अनायास एक बीज जगा  
प्रस्फुटित हुआ 
बड़ा हुआ पल्लवित
हुआ 
हर्षित मन
बल्लियों उछला 
कभी सोचा न था 
यह अपनी आँखें
खोलेगा  
उसका बढ़ना  
लगा एक करिश्मे
सा 
एक एक पर्ण उसका
खेलता 
वायु के संग झूम
झूम 
जाने कब कविता हो
गया 
सौन्दर्य से
परिपूर्ण 
उस पर छाया नूर 
मन कहता देखते
रहो 
दूरी उससे न हो 
आकंठ उसी में
डूबूं 
अनोखा एहसास हो 
वह ऐसे ही फले
फूले 
 नहीं कोई  व्यवधान हो |
आशा
आशा

बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंkhoob sunder......
जवाब देंहटाएंउसी बीज के अंकुरित होने की वजह से इतना सुंदर काव्य सृजन हो पा रहा है ! है ना ! शुभकामनायें !
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