तीस दिन के तीस किस्से 
काम बाली बाई के 
आप भी अनभिज्ञ न होंगे 
सूरतेहाल से |
होती सुबह झूठ  से 
झूठ की ही खाती 
एक बात भी सच न होती 
सहायक केवल नाम की |
छुट्टी मनाने के चक्कर में 
किसी न किसी को नित  मारती 
फिर उसका नुक्ता करती 
जीवन मस्ती से गुजारती |
कटोत्रा पैसे का मंजूर नहीं 
देती धमकी काम छोड़ने की 
आए दिन उधार मांगती 
पर चुकाने की कोई तिथी नहीं |
वह चाहे कितनी मुखर हो 
यदि भूले से कुछ मुंह से निकला 
जान सांसत में डालती |
है महिमा उसकी अनूठी 
सदा त्रास देती रहती
काम  ठीक से कभी न करती 
लगती बहुत बेकाम की |
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