
 कण कण में है बास तेरा 
पल  पल होता अहसास तेरा 
फिर सामने क्यूं नहीं आता 
क्या कमी  रही अरदास में |
पारस को छू लोहा स्वर्ण होता 
शिला चरण रज पा  हुई अहिल्या 
यदि तेरी छाया ही छू पाऊँ
 मैं धन्य हो जाऊं |
है एक प्रार्थना तुझसे 
तेरी शरण यदि  मैं पाऊँ 
जब भी साक्षात्कार हो 
तुझमें विलीन हो जाऊं |
आशा 
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