उन्मीलित अँखियाँ
मन मोहिनी  अदाएं 
बारम्बार आकृष्ट करतीं 
दूरी उनसे न हो पाती  | 
जब भी छिटकना चाहता 
उससे दूरी बढ़ाना चाहता 
दुगने वेग से धक्का लगता 
सजदे में सर झुकाने लगता |
है कशिश ऐसी उसमें 
जो राहें बाधित करती
चितवन हिरनी जैसी 
चाहत को अंजाम देती |
निमिष मात्र यदि  हो ओझल 
मैं खोया खोया रहता हूँ 
उनपचास पवन बहने लगते हैं 
खुद को भूल जाता हूँ |
आशा 
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