29 जुलाई, 2014

बन्दर राजा






चंचल चपल सक्रीय सदा
निचला बैठ नहीं पाता
 आदत से बाज नहीं आता
कुछ न कुछ हरकत करता
उछल कूद करता रहता |
खुद छोटा  पर पूंछ बड़ी सी
करता बहुत प्यार उसे
वह होती  बहुत सहायक
संतुलन कायम रखने में |
इस छत से उस छत पर जाना
 पेड़ों पर नर्तन करना
 अपनी लम्बी पूंछ लिए
है  खेल उसके लिए |
कच्चे पक्के फल खाना
कुछ  खाना कुछ को गिराना
बच्चों को चिपकाए रखना
है बस जिंदगी यही |
क्रोध जब कभी हावी होता
दांत दिखाता गुर्राता
फिर भी संयम नहीं छोड़ता
भागने में ही भलाई समझता |

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