:
-निशा के आगोश में 
स्वप्न कई सजते हैं 
देखे अनदेखे अक्स 
दृष्टि पटल पर उभरते हैं |
क्या कहते हैं ?
याद नहीं रहता 
सरिता के बहाव से 
कल कल निनाद करते
 अनवरत
गतिमान होते 
ये व्यस्त मुझे रखते |
भोर का आगाज सुन 
सब कुछ बदल जाता 
धरती पर पैर रखते ही 
असली धरातल नजर आता |
और कदम उठते हैं 
चौके में जाने को 
व्यस्त हो जाती हूँ 
घर के काम काज  में |
खाली कहाँ रह पाता  है 
मस्तिष्क मेरा छोटा सा 
स्वप्न सिमट जाते है 
व्यस्त दिनचर्या में |
आशा  

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