सपनों में जी कर क्या होगा 
नन्हीं बूँदें वर्षा की 
कुछ कानों में गुनगुना गईं 
वही बातें सोच सोच 
तन मन भीगा वर्षा में |
घनघोर घटाएं छाईं 
मौसम ने ली अंगडाई 
घोर गर्जना आसमाँ  में 
हड़कम्प मचाने आई |
चमकी बिजुरिया 
हुआ अम्बर  स्याह 
राही  यह सब देख कर 
भूला अपनी राह |
रुका वृक्ष की छाया में 
फिर भी बच न पाया 
कल्पना कहीं खो  गई 
भीगा भागा घर को आया |
सड़क पर कीचड़ ही कीचड़ 
घर का भी बुरा हाल था 
टपकती अपनी छत देख 
मन में मलाल आया |
पर अगले पल खुश हुआ 
अभी कष्ट है तो क्या हुआ 
यदि वर्षा कम हुई 
जल आपूर्ति कैसे होगी |
सूखा पड़ गया अगर 
पूरा साल कैसा होगा 
वास्तविकता यही है 
सपनों में जी कर क्या होगा |
आशा 
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