21 नवंबर, 2014

अभिलाषा


ना चाहत कुछ पाने की
ना ही झूठे वादों की
रीत जगत की जानी
चलती रहती मनमानी
गीत मधुर तूने गाया
यूं ही नहीं सब ने सराहा
सुनते ही मन भर आया
तूने पुरूस्कार पाया
अभिलाषा थी मेरी 
तू ही तू शिखर पर हो
आज इच्छा पूर्ण हुई
प्रार्थना  स्वीकार हुई
ना छीना अधिकार किसी का
सच में तूने जीना जाना
पारदर्शिता के चलते
जो स्थान तूने पाया
मेरी धारणा झुटलादी
कुछ पाने के लिए
छीनना नहीं आवश्यक
मनमानी हर जगझ नहीं होती
गुणवत्ता भी जरूरी होती |
आशा



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